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________________ १८/भगवान् महावीर शिशु की जन्मकुंडली ley ___ wr जन्म-कल्याण सूर्य की रश्मियों ने भूमि के हृदय का स्पर्श किया। अन्धकार का आवरण पलक में उठ गया। सब सबके लिए प्रत्यक्ष हो गए। अस्पष्टता का साम्राज्य समाप्त । स्पष्टता का दिशा के हर अचंल पर अधिकार। उस पुण्य घड़ी में प्रियंवदा दासी आई। महाराज सिद्धार्थ को प्रणाम कर उसने पुत्र-जन्म की सूचना दी। प्रियंवदा की बात सुनकर महाराज पुलकित हो उठे। उनके आनन्द-सिंधु में आकस्मिक ज्वार आ गया। उन्होंने प्रियंवदा को अमूल्य उपहार दिए। उसे सदा के लिए दासी-कर्म से मुक्त कर दिया। शिशु के अन्तस्तल में छिपी हुई भावना की पहली प्रतिमा प्रतिष्ठित हो गई। महाराज सिद्धार्थ ने महामात्य को बुलाकर कहा-'तुम उत्सव के अधिकारी को राजकुमार के जन्म-कल्याण के आयोजन का आदेश दो।' महाराज के मन में आज नई उमगें उमड़ रही थीं। नई-नई कल्पनाएं उनके मन पर तैरने लगीं। उन्होंने कहा-'महामात्य ! नगर की सज्जा राजकुमार के जन्मोत्सव के समय होती है, आज भी होगी। बंदी हर उत्सव पर मुक्त किये जाते हैं, आज भी किए जाएंगे। नगर की सफाई, सुगंधित जल का छिड़काव, ललित कलाओं का प्रदर्शन-ये सब हर उत्सव में होते हैं, आज भी होंगे। पर आज कुछ नया करना है। महामात्य! क्या यह संभव हो सकता है कि आज खाद्य वस्तुएं एकदम सस्ती कर दी जाएं? जो लोग गरीब हैं वे मूल्य दिये बिना आवश्यक वस्तुएं ले सकें? दुकानदारों को उसका मूल्य राजकोष से मिल जाये?' ____ महामात्य ने कहा-'महाराज ! आपकी इच्छा हो तो यह सब संभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
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