SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 सोया मन जग जाए ___ सास ने बहू को, पिता ने पुत्र को, स्वामी ने नौकर को कोई उपालंभ दिया, कटु वचन कहे तो बहू, पुत्र और नौकर को दु:ख होना स्वाभाविक है। कोई भी कटु वचन सुनना नहीं चाहता। इस कटुवचन से होने वाला दु:ख लम्बा नहीं होगा। वह दो-चार दस-बीस मिनिट में दूर हो जाएगा, किन्तु संवेदन से होने वाला दु:ख बहुत लंबे काल तक भी जीवित रह सकता है। दो-चार मास या दो-चार वर्ष ही नहीं, जीवन भर रह सकता है। आदमी अधिक दुःख भोगता है संवेदना के कारण। जो जितना भावूक और संवेदनशील होगा, वह उतना ही अधिक दु:खी होगा। चंचलता दुःख पैदा करती है। अभाव दु:ख पैदा करता है। इन सबसे अधिक दुःख पैदा करती है संवेदना। अभाव का दु:ख भाव में समाप्त हो जाता है। अभाव मिटा और दु:ख समाप्त। प्रतिकूल घटना घटी, दुःख हुआ। घटना की जो प्रतिक्रिया है, रिएक्शन है, वह दु:ख संस्कार बन जाता है। यह बहुत दीर्घ होता है। ___ मन:शून्य प्राणी थोड़ा दुःख भोगते हैं। एक पौधे को कोई सताता है, उसकी पत्तियां और टहनियां तोड़ता है तो निश्चित ही पौधे को पीड़ा होती है, किन्तु जैसे ही तोड़ना बंद किया, पीड़ा समाप्त, दुःख समाप्त। आदमी की कोई अंगुली तोड़ डालता है, उसे दु:ख होता है। यह दु:ख तब तक रहता है जब तक उपचार के द्वारा अंगुली ठीक नहीं हो जाती। पर अंगुली के तोड़ने की घटना का संवेदन और उससे होने वाला दु:ख अंगुली के ठीक हो जाने पर भी नहीं मिटता। वह दु:ख दीर्घकाल तक चलता है और आदमी दु:खी बना रहता है। वह दु:ख मनोगत हो जाता है। जो दुःख मन के साथ जुड़ जाता है, वह संवेदन बन जाता है, संस्कार बन जाता है। इसलिए संसार में सबसे अधिक दु:खी है मनुष्य, क्योंकि उसमें मन का अधिक विकास है। यदि मन अधिक विकसित नहीं होता तो वह दु:ख का भार नहीं ढोता। घटना घटी, बात समाप्त। ___बैल या भैंसे को कोई पीटता है, उस समय वह दु:ख या पीड़ा का अनुभव करता है। दो-चार क्षणों में वह दु:ख भूल जाता है पर आदमी भूलता नहीं, क्योंकि उसने अपनी स्मृति को तेज बना डाला है। उसकी कल्पना भी तीव्र है। उसका चिंतन, विश्लेषण और निर्धारण, संचयन और निचयन करता है। वह बात को समाप्त नहीं करता। निष्कर्ष निकालता ही जाता है। वह किस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, किस प्रकार प्रतिशोध की आग में जलता है, उसकी व्याख्या और मीमांसा नहीं की जा सकती। इसलिए जितना मन विकसित, उतना ही दु:ख प्रचुर। मनुष्य के लिए मानसिक विकास बहुत बड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy