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________________ समाज-निर्माण के दो घटक हो गया और वह राजरोग से ग्रस्त हो गया। सबसे पहले यह रोग राजा को हुआ और फिर उसका संक्रमण मनुष्यों में हुआ। कथा का निष्कर्ष यह है कि वासना और आवेग की वृत्तियाँ राजयक्ष्मा, कैंसर आदि बड़ी बीमारियों को जन्म देती हैं। इनका सहज निराकरण अध्यात्म के सूत्रों से हो सकता है। इस दृष्टि से धर्म और अध्यात्म केवल पारलौकिक यात्रा के लिए ही उपयोगी नहीं है, किन्तु यह वर्तमान जीवन को स्वास्थ्यप्रद, आनन्दप्रद और शक्ति-सम्पन्न बनाने के लिए भी उपयोगी है। शान्तिपूर्ण और ओजपूर्ण जीवन जीने का यह अपूर्व विज्ञान है। व्यक्ति इस विद्या से निर्मित होकर समाज के आधार को सुदृढ़ बना सकता है। व्यक्ति से मेरा तात्पर्य है त्रिपदी-युवक, अभिभावक और शिक्षक। इन तीनों का समाहार व्यक्ति है। आज के युवा की जो तस्वीर बनी है, उसमें कुछ रेखाएँ बहुत उभरी हैं और कुछ अस्पष्ट हैं। वुद्धि की रेखा बहुत उभरी है। उसमें सतरंगी चमक-दमक दिखाई दे रही है। उसके साथ तर्क की रेखा भी उभरकर सामने आई है। तर्क असहिष्णुता को जन्म देता है। असहिष्णुता व्यक्ति को आक्रामक वनाती है। इस स्थिति में अनुशासन और चरित्र की रेखाएँ अस्पष्ट हो गईं। उनके रंग फीके-फीके से लग रहे हैं। यह तस्वीर दूर से अच्छी लगती है, किन्तु पास से अच्छी नहीं भी लगती। आज का युवा बौद्धिक दृष्टि से बहुत समृद्ध हुआ है। मानसिक और भावनात्मक दृष्टि से वह समृद्ध नहीं है। इस एकांगी विकास का कारण केवल युवक नहीं, पूरा समाज है। समाज का रथ अनुशासन और चरित्र के पहियों के बल पर आगे बढ़ता है। पर उनके लिए कोई उपक्रम नहीं किया गया। अनुशासनहीनता और चरित्र विकास की कमी के लिए केवल युवक दोषी नहीं अभिभावक और शिक्षक भी युवक के साथ हैं। ___ मानसिक विकास और भावनात्मक विकास की दिशा को उद्घाटित किए बिना अनुशासन और चरित्र का विकास नहीं किया जा सकता। हमारी दृष्टि में वर्तमान समस्या का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है-असन्तुलन । बौद्धिक विकास और भावनात्मक विकास में सन्तुलन स्थापित कर समस्या की जटिलता को कम किया जा सकता है। इस सन्तुलन की स्थापना के लिए केवल युवक के मानस को बदलने की बात पर्याप्त नहीं है। इसके लिए त्रिकोणात्मक अभियान अपेक्षित है। अभिभावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003110
Book TitleSamaj Vyavastha ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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