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________________ लेश्या भावधारा जैन दर्शन की भाषा में कहा जा सकता है-अध्यवसाय हमारी सूक्ष्मतर चेतना है । भाव या लेश्या हमारी सूक्ष्म चेतना का स्तर है और चित्त हमारी स्थूल चेतना है । जो लेश्या का स्तर है, वह होने का, सूक्ष्म चेतना का स्तर है, जहां प्रतिक्षण घटित हो रहा है, भाव का चक्का निरंतर चल रहा है। जब हम नींद में सोते हैं तब हमारा चेतन मन काम नहीं करता किन्तु भाव बराबर काम करता है। नींद में भी भावनाएं चल रही हैं, लेश्याएं चल रही हैं। आदमी सोता है, लेश्याएं कभी नहीं सोती, भाव कभी नहीं सोते । भाव मन से काम लेता भी है और नहीं भी लेता। आदमी जागता है तो मन से काम लेता है और सोता है तो काम नहीं लेता । चेतन मन काम करता है तभी हम मन से काम करते हैं। यह चेतना का स्थूल स्तर है । लेश्या : शब्द-मीमांसा लेश्या हमारी चेतना की एक रश्मि है । शब्द भी बड़ा जटिल खोजा गया—लेश्या। इस शब्द पर भी बहुत उलझनें पैदा हुई हैं । लेश्या का अर्थ किया गया है-ज्योति-रश्मि। जैसे सूरज की रश्मियां होती हैं वैसे ही हमारी चेतना की रश्मियां होती हैं। चेतना हमारे भीतर है किन्तु उसकी किरणें बाहर तक फैल जाती हैं। नंदी की चूर्णि में इस शब्द पर बहुत ध्यान दिया गया । यह शब्द है रस्सी से बना लस्सी और उससे बन गया -लेस्सा- लेश्या । एक समीकरण बन गया—रस्सी+लस्सी+लेस्सा = लेश्या । रस्सी रज्जु का भी नाम है । हमारा जो आचरण है, व्यवहार है, उसका संबंध मन से नहीं है, मन ४६१ से परे की चेतना से है। एक आदमी बहुत समझदार और चिन्तनशील है किन्तु वह प्रकृति से कुटिल है। चिन्तन का संबंध मन से है पर कुटिलता का संबंध मन से नहीं है । व्यवहार में यह आरोपण भी कर दिया जाता है-अमुक व्यक्ति का मन बहुत कुटिल है । मन न सीधा होता है न टेढ़ा। यह वक्रता भाव से पैदा होती है। एक आदमी क्रूर है, नृशंस है । प्रश्न होता है - यह नृशंसता और क्रूरता कहां से पैदा हुई ? यह मन से नहीं, भाव से आती है । कृष्ण लेश्या का एक परिणाम बतलाया गया है-नृशंसता । इसी प्रकार जो व्यक्ति पांच आश्रवों में प्रवृत्त है, तीव्र आरम्भ में संलग्न है, षटुकाय से अविरत है, क्षुद्र है, अजितेन्द्रिय है, बिना विचारे काम करने वाला है, वह कृष्ण लेश्या में परिणत होता है। प्रमत्तता, आसक्ति, रस-लोलुपता, मूर्च्छा आदि से युक्त जो प्रवृत्ति है, वह मन का काम नहीं है। वह भावना के स्तर पर घटित होने वाली क्रिया है । पशु में भी है भावना का स्तर यह भावना का स्तर प्रत्येक प्राणी में होता है। क्या एक कुत्ते में मन की शक्ति है? उसमें कल्पना और योजना बनाने की शक्ति है किन्तु वह भावना के स्तर पर होती है । जब बादल आते हैं तब टिट्टिभ (टिटोड़ी) बहुत तेज बोलती है । वह अंडा देती है खुले में । घोसला नही बनाती । वह इतनी सुरक्षा करती है कि आदमी सोच ही नहीं सकता। वह सुरक्षा किस आधार पर करती है ? यह सारा प्रयत्न भावना से प्रेरित होता है । भावना का स्तर पशु में बहुत प्रबल होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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