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________________ ६६ बहिरंग योग सामान्य आदमी एक आयाम में जीता है। धार्मिक व्यक्ति दो आयामों में जीता है। उसे भीतर का जीवन जीना होता है और बाहर का जीवन भी जीना होता है। धर्म को जानने वाला व्यक्ति, धर्म की आराधना करने वाला व्यक्ति इन दो आयामों में जीयेगा। जो इन दो आयामों में जीता है, उसे बहुत सावधान रहना होता है। प्रश्न हुआ-साधक बाहर में कैसे रहे? इस प्रश्न पर अध्यात्म के आचार्यों ने बहुत सूक्ष्मदृष्टि से चिंतन किया और उसकी कुछ सीमाएं निर्धारित की। जैन आचार्यों ने साधना के दो आयाम प्रस्तुत किए-बहिरंग तपोयोग और अंतरंग तपोयोग। पंतजलि ने अपना साधना मार्ग अष्टांग योग बतलाया। उसका प्रारम्भ होता है यम से। यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार–इन पांचों का एक वर्ग है। यह बहिरंग योग है। धारणा, ध्यान और समाधि-यह अंतरंग योग है। पंतजलि ने यद्यपि बहिरंग शब्द का प्रयोग नहीं किया है किन्तु त्रयमन्तरंगे—इस प्रयोग से बहिरंग शब्द स्वतः निर्णीत हो जाता है। तीन योग अंतरंग हैं, शेष पांच बहिरंग हैं। जैन साधना पद्धति में बहिरंग तपोयोग के छह प्रकार किए गए हैं। यदि इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो कुछ नई बातें सामने आ सकती है। साधना का पहला बिन्दु : आहार-शुद्धि पतंजलि की साधना पद्धति में योग का प्रारम्भ यम से होता है। महावीर की दृष्टि में साधना का प्रारम्भ आहार-शुद्धि से होता है। आहार-शुद्धि बहुत महत्त्व की बात है। यम, नियम और आसन से भी पहले आहार-शुद्धि का मूल्य है। जब तक आहार शुद्धि का विवेक नहीं होगा तब तक न यम सधेगा, न नियम सधेगा और न आसन सध पाएगा। प्रत्याहार की तो बात ही नहीं। जितने साधना के वर्गीकरण मिलते हैं, उनमें आहार पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। इस वैज्ञानिक युग में आहार-शुद्धि को बहुत महत्त्व दिया जा रहा हैं किन्तु उस जमाने में साधना की दृष्टि से आहार-शुद्धि पर ध्यान दिया गया, यह विचित्र बात है। आहार-शुद्धि के दो पहलू है-एक स्वास्थ्य का पहलू है और दूसरा साधना का। स्वास्थ्य की दृष्टि से आयुर्वेद में बहुत विचार किया गया है, मित-भोजन पर काफी बल दिया गया है। सीमित खाना चाहिए, अधिक नहीं खाना चाहिए। महावीर की साधना पद्धति में साधना का पहला सूत्र है-आहार-शुद्धि। यदि पूछा जाए, साधना कहां से शुरू करें। महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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