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________________ भोगी भटकता है ३३७ आराधना करो।' लौकिक उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया-'तूड़ी और पलाल पैदा करने के लिए कोई खेती नहीं करता। खेती की जाती है अनाज के लिए। साथ-साथ तूड़ी और पलाल तो होगा ही। यही व्यावहारिक और आध्यात्मिक सोच का अंतर है।' - जिसका दृष्टिकोण केवल व्यावहारिक होता है, वह स्थूल भोग को छोड़ देता है, पर उसके साथ-साथ संकल्प को नहीं जोड़ता। जब तक संकल्प को नहीं जोड़ा जाता तब तक जो परिणाम होना चाहिए वह नहीं होता। संकल्प उसी क्रिया को और अधिक तेजस्वी बना डालता है। अनुभव को जगाने का पहला सूत्र है-न करने का संकल्प। इतने मात्र से काम नहीं बनता। संकल्प ग्रहण कर लिया, पर भाव कहीं दूसरी ओर जा रहा है। 'मिठाई नहीं खाऊंगा'—यह संकल्प ग्रहण कर लिया, परन्तु भीतर का भाव कहता है-रोज मत खाओ. पर कभी-कभी खाने में क्या हर्ज है। अच्छी चीज बार-बार नहीं मिलती। इससे मन ललचा जाता है। भाव के साथ मन भी बह जाता है। वह भी वैसा ही बन जाता है। अब भाव और संकल्प में संघर्ष होता है। भाव दूसरी दिशा में जाता है और मन दूसरी दिशा में। दोनों में टकराहट होती है। इस स्थिति में अनुभव नहीं जागेगा। ठाकुर ने आलू का प्रत्याख्यान कर लिया। तीर्थयात्रा पर गया। एक स्थान पर जीमनवार था : वहां वह भोजन करने बैठा । वहां आलू की सब्जी बनी थी। परोसने वाले से कहा-'आलू नहीं, केवल झोल आने दो।' उसने वैसा ही किया परंतु चम्मच में एक आलू भी आ गया और उसने उसे ठाकुर की थाली में परोसा। ठाकुर उसे खाने लगा तब पास में बैठे एक भाई ने उसे प्रत्याख्यान की स्मृति दिलाई। ठाकुर बोला-'यह आलू नहीं, 'लुढकन' है। लुढकते-लुढकते आ गया। मैं क्या करूं ?' ठाकुर ने संकल्प लिया, पर मन का भाव नहीं बदला। संकल्प के साथ मन का भाव भी बदलना चाहिए, तब अनुभव को जगाने की बात प्राप्त होती है। इन दो सूत्रों के साथ तीसरा सूत्र भी परम आवश्यक है। जब तक परम आत्मा के साथ तादात्म्य नहीं जुड़ता, तब तक अनुभव नहीं जागता। बहुत बड़ी बात है परमात्मा के साथ, अर्हम् और अर्हत् के साथ तादात्म्य होना। जब तक अर्हत् की दशा का अनुभव करने का अभ्यास नहीं होता तब तक अनुभव नहीं जगता। आचारांग में कहा गया है जो परम को देख लेता है, वह उससे एकात्म हो जाता है। अनुभव जागरण के तीन सूत्र अनुभव की जागृति के ये तीन साधन हैं-१. अकरण का संकल्प २. वैसा ही भाव और मन ३. परम आत्मा के साथ तादात्म्य । अकरणस्य संकल्पः, भावो मनोऽपि तद्गतम् । परात्मना च तादात्म्यं, प्रस्फुटोऽनुभवस्तदा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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