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________________ २२६ महावीर का पुनर्जन्म को नहीं जानता, वह जैन परम्परा का, ऋषभ या काश्यप की परम्परा का तीर्थंकर नहीं हो सकता। दूसरी परम्परा थी अग्निविद्या की परम्परा, यज्ञ की परम्परा। उस पर एक मात्र ब्राह्मणों का अधिकार रहा। भविष्य में दोनों परम्पराओं का मिलन हो गया। जो आत्मविद्या की परम्परा क्षत्रियों में थी, वह ब्राह्मणों में चली गई। अग्निविद्या को जैनों ने अपना लिया। ___ अध्ययन करने वाले व्यक्ति के यह ध्यान में रहना चाहिएजितने उपनिषद् हैं, वे आज वैदिक परम्परा से जुड़ गए हैं, किन्तु सारे उपनिषद् वैदिक परम्परा के नहीं हैं, बहुत सारे उपनिषद् श्रमण परम्परा के भी हैं। कुछ ऐसा योग बना, श्रमण परम्परा के अनेक सम्प्रदाय नष्ट हो गए। नष्ट होने के बाद जो धन बचता है, उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं रहता। जहां कोई उत्तराधिकारी नहीं होता वहां धन को कोई भी अपने अधिकार में ले लेता है। श्रमण परम्परा के उपनिषदों को वैदिक परम्परा ने अपने अधिकार में ले लिया और वे उपनिषद् भी वैदिक परम्परा के माने जाने लगे। वस्तुतः अनेक उपनिषदों में वैदिक परम्परा के प्रतिकूल तत्त्व बहुत हैं। उपनिषदों में यज्ञों का खंडन किया गया है, वेदों का खंडन किया गया है। यदि उपनिषद् वैदिक परम्परा से जुड़े होते तो उनमें ये बातें कैसे लिखी जातीं? इससे यह स्पष्ट होता है-उपनिषद् किसी अन्य परम्परा के रहे हैं किन्तु कालांतर में उनको स्वीकार कर लिया गया। ब्राह्मण परम्परा अपनाने में बहुत उदार रही है। यह इन शताब्दियों की घटना नहीं है, किन्तु ऐतिहासिक तथ्य है। हर्मन जेकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी यह स्वीकार किया है-वैदिक परम्परा बहुत उदार रही है और उसने बहुत सारे दूसरे तत्त्वों को अपना लिया। आज श्रमण और ब्राह्मण-दोनों परम्पराओं का अंत हो गया। वर्तमान में शुद्ध रूप में न किसी को श्रमण परम्परा कहा जा सकता है और न किसी को ब्राह्मण परम्परा। दोनों में तत्त्वों का इतना मिश्रण है कि पृथक्करण करना आसान नहीं है। बहुत गहरे अध्ययन के बाद ही दोनों परम्पराओं में पृथक्ता के बिन्दुओं का उद्घाटन सम्भव बन सकता है। राजर्षियों की परम्परा आत्मविद्या के अधिकारी थे क्षत्रिय, इसका एक साक्ष्य है उत्तराध्ययन का अठारहवां अध्ययन। इसमें क्षत्रिय राजाओं की एक लम्बी परम्परा का वर्णन है। प्रायः शासक क्षत्रिय होते रहे हैं। जो क्षत्रिय शासक मुनि बने हैं, उनकी एक प्रलंब शृंखला जैन परम्परा में है। उत्तराध्ययन में दो प्रकार के राजाओं का इतिहास मिलता है। कुछ वे हैं, जो प्राग ऐतिहासिक काल में हुए हैं और कुछ वे हैं, जो ऐतिहासिक हैं : भरत, सागर, सनत्कुमार आदि प्रागैतिहासिक हैं राजा दशार्णभद्र, उद्रायण आदि ऐतिहासिक हैं१. राजा संजय १०. चक्रवर्ती जय २. चक्रवर्ती भरत ११. राजा द्विमुख ३. चक्रवर्ती सागर १२ राजा दशार्णभद्र Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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