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________________ ७४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग मानसिक पित्त हैं। लोभ, लालच, आकांक्षा- ये मानसिक कफ हैं। प्रकृति दोनों की समान है। पित्त का काम है- गर्मी बढ़ाना, स्फूर्ति लाना, तेजी लाना। वही काम गुस्से का है। उससे भी स्फूर्ति आ जाती है, आंखें लाल हो उठती हैं, चेहरा भी तमतमा उठता है। कफ मृदुता लाता है। हमारे शरीर में जो लचीलापन है वह कफ के कारण है। कफ सूख जाए तो शरीर अकड़ जाए। लचीलापन, मृदुता, कोमलता, स्निग्धता- यह कफ के कारण हैं। यदि कफ की कमी हो जाए तो कोई आदमी बौद्धिक काम नहीं कर सकता। तीसरा दोष है- वात। मानसिक जगत् में जो चंचलता है, जो प्रेरणा है, वह वात है। सारी प्रेरणा वायु से मिलती है। यदि हमारे शरीर में वायु न हो, आदमी चल भी नहीं सकता। कोई प्रेरणा नहीं हो सकती, कोई प्रवृत्ति नहीं हो सकती। शरीर में रक्त का संचार होता है, उसके पीछे भी वायु का योग होता है। वात, पित्त और कफ- ये सारे वायु के द्वारा संचालित होते हैं। इन तीन दोषों का संतुलन बिगड़ता है तो बीमारी पैदा होती है। मानसिक शोधन के लिए इनका संतुलन जरूरी है। जीवन विज्ञान- अगला कदम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहत सारे केन्द्र हैं किन्तु मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत सारे केन्द्र नहीं हैं। इस विद्या पर हमारा ध्यान ही नहीं है, क्योंकि लौकिक शिक्षा के द्वारा एक दृष्टिकोण बन पाया- समस्या पदार्थ जगत् से पैदा होती है और समस्या का समाधान भी पदार्थ जगत् में ढूंढना होगा। जगत् की सीमा को छोड़कर हम न समस्या पर विचार करते हैं और न समाधान पर विचार करते हैं। समस्या और समाधान दोनों का स्रोत है- पदार्थ का जगत्। चेतना के जगत् से तो जैसे हमारा कोई वासता ही नहीं है। न समस्या के बारे में हम चेतना पर विचार करते हैं और न समाधान के लिए वहां खोज करते हैं। शरीर पर बीमारी पैदा होती है। सीधा ध्यान डाक्टर और दवा पर जाता है, बाह्य पर जाता है। कभी हम इस बात को नहीं सोचते कि बीमारी का कारण भीतर भी हो सकता है, बीमारी का समाधान भीतर भी मिल सकता है। हमारी दृष्टि भी नहीं जाती और इसलिए नहीं जाती कि हमें जीवन-विज्ञान की शिक्षा उपलब्ध नहीं है। विश्वविद्यालयों में हायर स्टडीज के प्रयोग चलते हैं उच्चतम अध्ययन की सुविधाएं मिलती हैं, उच्चतम अध्ययन, किन्तु उन्हीं शाखाओं, जो शाखाएं हमें बाहर की ओर ले जाती हैं, दृष्टि को बाहर ही अटका देती है। यह अध्यात्म-विद्या उससे एक अगला कदम है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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