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________________ स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण पहली शर्त है प्रकाश। जब बिजली चली जाती है तो मोमबत्ती को खोजना पड़ता है। वह मिलती भी है और नहीं भी मिलती। मूल बात है कि हमारी बिजली बनी रहे। हमारी यह प्राण की बिजली, प्राण-विद्युत् जब सक्रिय होती है तब सब ठीक चलता है और जब बिजली मन्द होने लगती है तब पता चलता है कि जीवन जीना कितना कठिन काम है। १० वर्ष के बच्चे को, छलांग भरना, २-३ सीढ़ियां एक साथ चढ़ जाना और उतर जाना सरल लगता है, किन्तु वही जब ७० वर्ष का होता है तब पता चलता है कि तीन-तीन सीढ़ियां कैसे एक साथ उतरा जाता है? कैसे कूदा जा सकता है? वह अपने पैरों से भी नहीं चल सकता, तीसरा पैर और बनाना पड़ता है, क्योंकि प्राण की बिजली चुक जाती है। आस्था का निर्माण भी प्राण-विद्युत् के सहारे होता है। प्राण शक्ति का अपव्यय न हो हमारे विकास की, हमारे परिवर्तन की सबसे पहली शर्त है- प्रकाश अन्तर्दृष्टि का प्रकाश, प्राण की शक्ति का प्रकाश। प्राण की शक्ति को व्यर्थ न खोएं, यह आवश्यक है। एक कंजूस आदमी पैसे को खर्च नहीं करता, पैसों को खर्च करने का प्रसंग आता है तो बड़ी मुसीबत आ जाती है, उसकी आंखें ही नहीं, हाथ भी रोने लग जाते हैं। आंखों में ही आंसू नहीं आते, हाथ में भी आंसू आने लग जाते हैं, उसी प्रकार प्राण शक्ति के व्यय के लिए भी हमें कंजूस होना चाहिए। उतना ही काम लें, जितना जरूरी है, व्यर्थ काम न लें, और जिस दिन यह भावना जागी, व्यर्थ के सारे काम बन्द हो जाएंगे। गुस्सा कैसे करेंगे? गुस्सा करने का मतलब है प्राणशक्ति को व्यर्थ में बहा देना। उसका नाला खोल देना, द्वार खोल देना। जितने आवेग हैं, जितनी आवेशपूर्ण प्रवृत्तियां हैं, जितनी तीव्र वासनाएं हैं, वे सारी प्राणशक्ति का अपव्यय करने वाली हैं। प्राणशक्ति को बचाने की पूरी प्रक्रिया धर्म की प्रक्रिया है। उससे अपने आप चेतना का जागरण होता है। प्राणशक्ति, जो व्यर्थ में खर्च हो रही थी, वह शक्ति सुरक्षित बन जाती है और दूसरी दिशा में उसका उपयोग होने लग जाता है। बदलने का दूसरा सूत्र परिवर्तन का दूसरा सूत्र है समता। समता का एक अर्थ है- सर्दी और गर्मी को सहने की क्षमता; चांद और सूरज- दोनों का बराबर उपयोग। यह प्रक्रिया हमारी श्वास की प्रक्रिया है। हठयोग का मतलब हठ करना, कष्ट देना नहीं है। यह बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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