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________________ स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण ६५ सकता है, किन्तु ठीक तापमान तक पहुंचना चाहिए। ठीक तापमान के बिन्दु तक नहीं पहुंचता तो पानी पानी रहेगा, पानी बर्फ नहीं बनेगा। पानी भाप बन सकता है यदि तापमान ठीक मिल जाए। प्रश्न है तापमान का, कितने तापमान तक हमारी भावना पहुंचती है, किस बिन्दु तक पहुंचती है। यदि अदम्य भावना, प्रबल कामना मन में हो तो सचमुच बदलाव आता है। ध्यान बदलने की प्रक्रिया है। ध्यान के द्वारा, संकल्प शक्ति के प्रयोग के द्वारा मनुष्य जितना बदल सकता है उतना और कोई दुनिया में साधन नहीं कि वह बदल सके। धार्मिक होने का अर्थ प्रत्येक प्राणी धार्मिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तो बदलने की बात पहले सोचता है! आत्मा से परमात्मा बनने की बात सोचता है। वर्तमान में आत्मा जिस रूप में है उस रूप में परमात्मा की कामना नहीं हो सकती। आत्मा के विचित्र रूप हैं। सारी बुराइयां, सारे आवेग, सारे आवेश इसी आत्मा में रह रहे हैं। यह आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती। परमात्मा वही आत्मा बन सकती है जो बदलना शुरू कर दे। जिस क्षण में बदलना शुरू कर दे वहां से परमात्मा बनने की हमारी यात्रा शुरू हो जाती है। एक क्षण में कोई परमात्मा नहीं बन जाता। कोई चमत्कार नहीं, कोई जादू नहीं। लम्बी अवधि तक के परिवर्तन की प्रक्रिया चलती है। जो आज शुरू होती है, बढ़ते-बढ़ते एक क्षण ऐसा आता है हजारों वर्षों के बाद कि आत्मा परमात्मा बन जाती है। प्रत्येक धार्मिक अपने सामने यह लक्ष्य रखता है, यह ध्येय बनाता है कि परमात्मा बनना है। धार्मिक होने का मतलब है- बदलने का संकल्प स्वीकार करना। ___आज के वैज्ञानिक बदलने की बात में बहुत लगे हुए हैं। सारी की सारी 'जेनेटिक इंजीनियरिंग' बदलने में लगी हुई है। जीन को बदला जाए। जीन बदलेगा तो सारी पीढ़ी बदल जाएगी। मनुष्य का निर्माण होगा तो नई पीढ़ी का निर्माण होगा और वह निर्माण हम चाहेंगे वैसा होगा। आदमी जैसा बीज बोता है वैसी ही खेती होती है। वैज्ञानिकों की कल्पना है कि ऐसा समय आने वाला है जब हम आदमी को जैसा चाहें वैसा पैदा कर सकेंगे। साहित्यकार को पैदा करना है तो साहित्यकार को पैदा कर सकेंगे। लेखक को पैदा करना है तो उसे पैदा किया जा सकेगा। बाजार में लोग जाएंगे कि ऐसा लड़का या लड़की चाहिए, वैसी ही जीन मिल जाएंगी। उसे बाजार में खरीदा जा सकेगा। मनुष्य ने इतना ज्ञान विकसित किया है कि वह जीन को बदलने की स्थिति में पहुंच गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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