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________________ स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण कि पूरा शरीर, शरीर का कण-कण और शरीर का हर सैल श्वास ले रहा है। पूरे शरीर की संवेदनशीलता जाग जाएगी और पूरा शरीर-प्राण शक्ति से ओतप्रोत हो जाएगा। यह प्राणशक्ति के विकास का प्रयोग है। अध्यात्म के आचार्यों ने केवल उपदेश नहीं दिया कि प्राण शक्ति का विकास करो। उन्होंने इसके प्रयोग भी बतलाए और उनमें यह महत्वपूर्ण प्रयोग है- पूरे शरीर से प्राण लेने का अनुभव करना। तीन महत्त्वपूर्ण केन्द्र साधना की दृष्टि से तीन बहुत महत्वपूर्ण केन्द्र हैं१. प्राण-केन्द्र- नासाग्र। २. दर्शन-केन्द्र ३. ज्योति-केन्द्र- आचार के अनुशासन का केन्द्र, स्वभाव-परिवर्तन और स्वभाव-नियंत्रण का केन्द्र स्वतन्त्र व्यक्तित्व के विकास के लिये ये तीन अपेक्षाएं हैं-प्राण शक्ति का विकास, अन्र्दृष्टि का विकास और अनुशासन या नियन्त्रण का विकास। पहली बात है- प्राणशक्ति का विकास। यदि हम नासाग्र का ठीक उपयोग करें, प्राणकेन्द्र पर दीर्घकालं तक ध्यान करें तो प्राणशक्ति का विकास हो जाता है। प्राणशक्ति का विकास हुए बिना अगला विकास होना कठिन लगता है। प्राणशक्ति एक विस्फोट की शक्ति है। शक्ति के बिना दुनिया में कुछ भी नहीं होता। सारे काम शक्ति के माध्यम से होते हैं। मनुष्य को संघर्ष भी करना पड़ता है, विस्फोट भी करना पड़ता है। हमारा जीवन समन्वयात्मक है, सह-अस्तित्व वाला है, किन्तु उसमें संघर्ष के बीज भी छिपे हुए हैं। अत: संघर्ष करना भी जरूरी है और स्वतंत्र व्यक्तित्व के निर्माण के लिए तो संघर्ष करना बहुत जरूरी है। पलायन से काम नहीं चलता, संघर्ष जरूरी होता है। संघर्ष शक्ति के बिना हो नहीं सकता। उसके लिए भी प्राणशक्ति का विकास चाहिए। अन्तर्दृष्टि का विकास शक्ति आखिर शक्ति है। शक्ति का उपयोग अच्छे काम के लिए भी हो सकता है और शक्ति का उपयोग बुरे काम के लिए भी हो सकता है। शक्ति का उपयोग अच्छे काम के लिए हो, इसके लिए जरूरी है अन्तष्टि का विकास। कोरा प्राणशक्ति का विकास बहुत खतरनाक बन जाता है। उस विकास को भी ठीक दिशा में संचालित करने के लिए अन्तर्दृष्टि का विकास चाहिए। अन्तर्दृष्टि के विकास का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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