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________________ ४८ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग उदासीनता अनुशासन के प्रति अनुशासन का मूल है- आत्मानुशासन। अध्यात्म-शिक्षा. का उद्देश्य है- आत्मानुशासन पैदा करना। इस विषय में अध्यात्म के आचार्यों ने अनेक महत्त्वपूर्ण खोजें की हैं। स्वावलम्बन और स्व-निर्भरता- ये दो आत्मानुशासन के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। जो व्यक्ति स्वावलम्बी नहीं होता, स्व-निर्भर नहीं होता, वह आत्मानुशासी नहीं हो सकता। जो आत्मानुशासी होगा, वही स्वावलम्बी और स्व-निर्भर होगा। धर्म के आचार्यों ने इस विषय में जो तथ्य प्रस्तुत किए थे, वे भुला दिए गए और सब काम माता-पिता सह लेते हैं, पर आत्मानुशासन की दिशा में लड़का या लड़की प्रस्थान करता है तो वे वर्जना करेंगे, यह मत करो। . मनुष्य चाहता ही नहीं है कि आत्मानुशासन आए। वह चाहता है कि सब उसके जैसे होकर रहें, कोई किसी दूसरी पंक्ति में या आगे जाकर न बैठ जाए।आगे बढ़ने के लिए सहारा या सहयोग देने वाला खोजने पर भी नहीं मिलेगा और पीछे सरकाने वाले बिना प्रयत्न ही सर्वत्र उपलब्ध हो जाते है। उन्हें अच्छा नहीं लगता यह आत्मानुशासन का पथ। स्व-निर्भरता की आस्था ___एक राजकुमार दीक्षित हो रहा था। माता-पिता ने कहा- कुमार! तुम बड़े सुकुमार हो, बहुत कोमल हो। तुम दीक्षित हो रहे हो। तुम्हें ज्ञान नहीं है, शरीर में बहुत बीमारी पैदा हो जाएगी तो चिकित्सा नहीं करा सकोगे। अचिकित्स्य है यह संयम का मार्ग। बीमारी पैदा होने पर क्या करोगे? कौन आहार पानी लाकर देगा? कौन तुम्हें दवा देगा? भूखे-प्यासे और रुग्ण होकर बैठे रहोगे। क्या प्राप्त होगा?' राजकुमार बोला-'माता-पिता! जंगल में रहने वाले पशु बीमार हो जाते हैं। कौन उनकी परिचर्या करता है? कौन उन्हें भोजन-पानी लाकर देता है? रुग्ण पड़े रहते हैं। जब स्वस्थ होते हैं तब जंगल में जाकर खा-पी लेते हैं। जब ये पशु भी ऐसा कर सकते हैं तो मैं मनुष्य हूं, ऐसा क्यों नहीं कर सकूँगा?' यह एक महत्त्वपूर्ण खोज थी स्वावलम्बन और स्व-निर्भरता की। रोग की स्थिति में भी दूसरे का सहारा न लिया जाए। यदि रोग का प्रतिकार करना हो तो बाहरी वस्तु से न किया जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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