SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग आकांक्षा, पैसा, धन इसके सिवाय दुनिया में कोई सम्बन्ध नहीं। इतनी आकांक्षा जागती है कि सारे सम्बन्ध गौण हो जाते हैं। __ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं अविरति के कारण। एक ओर पदार्थ के शस्त्र, दूसरी ओर हमारे भावात्मक शस्त्र। एक है मन, वचन और काया का दुष्प्रयोग, दूसरा है भाव और तीसरा है अविरति- आकांक्षा। ये तीन शस्त्र हैं। गणित की भाषा में सोचें तो पहला स्थान बंदूक, तोप और गोली का नहीं है। पहला स्थान है- भाव का, मन-वचन और काया के दुष्प्रयोग का और आकांक्षा का। यह होता है जब पदार्थ के शस्त्र बनते हैं या पदार्थ ही शस्त्र बन जाता है। दुनिया में कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं, जो शस्त्र न बन सके किन्तु वे पदार्थ शस्त्र तब बनते हैं, जब भीतर में हमारे प्रथम श्रेणी के शस्त्र सक्रिय होते हैं। जब तक प्रथम श्रेणी के शस्त्र सक्रिय नहीं होते, तब तक द्वितीय श्रेणी के शस्त्र सक्रिय हो नहीं सकते। जीवन-विज्ञान की शिक्षा इसलिए जरूरी है कि हम प्रथम श्रेणी के शस्त्रों का नि:शस्त्रीकरण कर सकें। राजनेताओं की, राजनीति के मंच पर होने वाली निःशस्त्रीकरण की चर्चा कभी पूरी नहीं होती और इसलिए नहीं होती कि वे द्वितीय श्रेणी का काम करना चाहते हैं। जो बाद में करने का काम है, वह पहले करना चाहते हैं। पहले करने का काम नहीं करना चाहते। जब तक पहले करने का काम नहीं किया जाता, तब तक बाद में करने का काम पूरा नहीं होता। शांतिपूर्ण जीवन के लिए जीवन-विज्ञान हमारी पूरी शिक्षा की व्यवस्था में उन प्रथम श्रेणी के शस्त्रों को मृदु बनाने की, उनके जहर को समाप्त करने की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए अध्यात्म शिक्षा की जरूरत होती है, जिससे कि हम प्रथम श्रेणी के शस्त्रों को समाप्त कर सकें, नि:शस्त्रीकरण कर सकें, वह नहीं होता है तब तक शस्त्र रखने वाला भी दु:ख पाता है। आदमी किसी को पीट देता है। हाथ उठ जाता है, मन में अनुताप होता है कि काम अच्छा नहीं किया। मैंने पीट दिया। हाथ का संयम नहीं रह सका। मन में बुरी कल्पना आती है, बुरा चिन्तन चलता है। मन में दु:ख भी होता है कि मैंने इतनी बुरी बात क्यों सोची? शस्त्र का प्रयोग करने वाला, स्वयं दु:खी होता है और जिस पर शस्त्र का प्रयोग किया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy