SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा की समस्याएं संयुक्त प्रयास ___ आज़ यह सामान्य रूप में कहा जाने लगा है कि आदमी के मन में धर्म के प्रति भावना नहीं रही। यह प्रश्नचिह्न नहीं, एक स्वाभाविक बात है और इसलिए है कि धर्म के संस्थानों को जो देना चाहिए, वह नहीं दिया जा रहा है। उन्हें प्रकाश देना चाहिए, पर वह नहीं मिल रहा है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि प्रकाश देने वाला भी अन्धकार उगलने लग जाता है। आज धर्म के संस्थान अन्धकार दे रहे हैं । वह अन्धकार बिखेरने के लिए नहीं हैं। वह प्रकाश देने वाले हैं। वे प्रकाश-स्तंभ बनें और अध्यात्म का विकिरण करें। धर्म का संस्थान अध्यात्म और ध्यान का संस्थान बन जाये। वह हमारे आन्तरिक हेतुओं, कारणों, रसायनों और भावों को, जो हमें प्रमत्त कर रहे हैं, बदलने वाला बन जाए। इस प्रकार शिक्षण संस्थान आदमी को शिक्षित करने का पचास प्रतिशत कार्य करेंगे और शेष पचास प्रतिशत कार्य करेंगे धर्म-संस्थान। दोनों के मिले-जुले प्रयत्न से एक अद्भुत व्यक्तित्व का निर्माण होगा परन्तु धर्म के संस्थान यह दायित्व उठा पायेंगे, यह कल्पना भी कुछ दुरुह लगती है। इसका कारण धार्मिक लोगों का यह चिन्तन है- धार्मिक उपदेश दे देना, धार्मिक चर्चाएं कर लेना, व्याख्यान दे देना आदि-आदि ही उनके कार्य हैं। किन्तु अध्यात्म को जगाने के लिए जितनी गहरी निष्ठा, जितनी तीव्र साधना, त्याग और तपस्या चाहिए तथा जितने शक्तिशाली उपक्रम चाहिए, वे नहीं होते हैं तो धर्म के संस्थान भी वैसा नहीं कर पाते और आज सचमुच धर्म के संस्थानों से वैसा नहीं हो रहा है। पहेली सुलझ सकती है शिक्षा-क्षेत्र की अनेक समस्याएं हैं। उनका चिन्तन हमने किया है और समाधान के रूप में एक तथ्य निश्चित रूप से उभर कर आता है कि प्रत्येक शिक्षार्थी युवक एक वर्ष का पूरा समय जीवन-विज्ञान को समझने के लिए लगाए, अपने आत्मानुशासन के विकास के लिए लगाए। यदि प्रत्येक विद्यार्थी में यह भावना बलवती बन जाए और इसका पूरा चित्र समाज के सामने प्रस्तुत हो जाए तो यह निश्चय के साथ कहा जा सकता है कि सरकार जिस शिक्षा की पहेली का समाधान नहीं कर सकती, अनुशासन की प्रतिष्ठापना नहीं कर सकती, उसको समाज अपने प्रयत्न और पुरुषार्थ से सुलझा देगा और यह धार्मिक जगत का बहत बटा अनदान टोगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy