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________________ शिक्षा की समस्याएं सहिष्णुताः शरीर सिद्धि की प्रक्रिया हम जिस दुनिया में जी रहे हैं वह संयोग-वियोग की दुनिया है। न जाने प्रतिदिन कितनी करुण घटनाएं घटित होती हैं, दुर्घटनाएं होती हैं। अनेक व्यक्ति मर जाते हैं। धन चला जाता है। अनेक विकट परिस्थितियां पैदा होती हैं। आदमी में उन्हें झेलने की शक्ति नहीं रहती । इस स्थिति में क्या यह सम्भव है कि हमारी शिक्षा हमें कोई सहारा दे? आज की शिक्षा के साथ यह शिक्षा अवश्य ही जोड़नी होगी, और वह शिक्षा है अपने आपको देखने की शिक्षा, मनोबल को विकसित करने की शिक्षा, सहिष्णुता को बढ़ाने की शिक्षा । जैन मुनि सर्दी में एक कपड़ा ओढ़ते हैं, दो कपड़ा ओढ़ते हैं। गर्मी में आतप लेते हैं। चिलचिलाती धूप में शिला पर दो-तीन घंटा लेट जाते हैं। ऐसा लगता है-यह कितना कठोर कर्म है ! कितनी कठोर तपश्चर्या है ! क्या यह आवश्यक है? क्या यह व्यर्थ प्रयत्न नहीं है? शरीर को कपड़ों की जरूरत है तो फिर एक या दो कपड़े ही क्यों ओढ़े जाते हैं ? जब शरीर को छाया की जरूरत है तो फिर धूप का सेवन क्यों किया जाता है ? शरीर को अनावश्यक कष्ट और क्लेश दिया जाए ? बड़ा अजीब है यह धर्म ! अनुभवों से गुजरने के बाद यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि जब तक साधक काया को नहीं साध लेता, कायसिद्धि नहीं कर लेता, तब तक सत्य के शोध की मंजिल तो तय होती ही नहीं, असत्य के भयंकर परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। कायक्लेश शरीर को सताने की प्रक्रिया नहीं है, यह शरीर को साधने की प्रक्रिया है । इसके द्वारा शरीर इतना साध लिया जाता है कि वह हर परिस्थिति को झेल लेता है । जैसे-जैसे श्वास के प्रति जागरूकता होती है, वैसे वैसे काया की सिद्धि सधती जाती है। श्वास की आंच में तपने वाली काया कभी कच्ची नहीं रहती । भगवान् महावीर ने भयंकर कष्ट सहे । अन्यान्य साधकों ने भी कष्ट सहे । क्या वे उन कष्टों का प्रतिकार नहीं कर सकते थे । उनके सामने दो मार्ग थे । एक था सहने का मार्ग और दूसरा था प्रतिकार का मार्ग | उन्होंने सहने के मार्ग को अपनाया । वे कष्टों को सहते गए । सहते-सहते उनका समूचा शरीर चुम्बकीय क्षेत्र बन गया। प्रक्रिया पारदर्शन की २९ हम कांच में मुंह देख सकते हैं, क्योंकि वह निर्मल है। पारदर्शी कांच के द्वारा हम पार की वस्तु देख सकते हैं, पर पहले पारदर्शी होना होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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