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________________ शिक्षा की समस्याएं विकास का प्रश्न जगत में पशु भी हैं, पक्षी भी हैं और मनुष्य भी हैं। मनुष्य भिन्न श्रेणी का प्राणी है, क्योंकि वह बहुत विकसित और विकासशील है। उसने बहुत विकास किया है। विकास के दो आधार हैं-भाषा की स्पष्टता और चिन्तन। भाषा और मन-ये दो विकास के माध्यम हैं। मन से स्मृति, कल्पना और चिंतन होता है। मनुष्य में विकसित स्मृति है, विकसित कल्पना है और विकसित चिन्तन है इसलिए वह विशिष्ट माना जाता है। पशु में भाषा है पर स्पष्ट नहीं है। उसमें चिंतन है, पर बहुत लंबा चिंतन नहीं है। मनुष्य की भाषा स्पष्ट है और चिंतन विकसित है। ____ हम ध्यान के द्वारा अतीत की स्मृति को कम करने का प्रयत्न, भविष्य की कल्पना को छोड़ने का प्रयत्न और वर्तमान में जीने का प्रयत्न करते हैं। प्रश्न होता है, क्या हम फिर उलटा चल रहे हैं? जो विकास हमें भाषा और चिंतन का प्राप्त हुआ है, उससे उलटा चल रहे हैं? मौन का अभ्यास, विकल्पों को कम करने का अभ्यास विकास की प्रक्रिया है? यदि भाषा न हो और वह अच्छी स्थिति मानी जाए तो अविकसित प्राणी बहुत अच्छे हैं। कहां है उनमें भाषा और चिंतन? वनस्पति के जीवों में या कीड़े-मकोड़ों में कहां है भाषा? कहां है चिंतन? क्या हम उस स्थिति में लौट जाना चाहते हैं? क्या हम प्राप्त विकास को भी अवरुद्ध कर देना चाहते हैं? यह प्रयत्न क्यों? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। क्या यह अच्छा नहीं होता कि हमें भाषा उपलब्ध नहीं होती? मन प्राप्त नहीं होता? क्या यह अच्छा नहीं होता कि हम फिर मनुष्य ही नहीं होते? जब हमे मनुष्य बन गए, हमें भाषा और चिन्तन का विकास प्राप्त हो गया, तो फिर उसे रोकने का प्रयोजन ही क्या है? उससे उलटे चलने का अर्थ ही क्या है? हमें जो प्रवृत्ति के स्त्रोत मिले हैं उन्हें निवृत्ति की ओर क्यों ले जाएं? स्वाभाविक प्रक्रिया भारत में चिन्तन की दो धाराएं सदा रही हैं। एक है प्रवृत्तिवाद और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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