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________________ २० जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग तक चेतन की जो अर्जित आदत है, वह नहीं बदलेगी। इस समस्या से निपटने के लिए अनुप्रेक्षा यानी भावना का सहारा लेना बहुत जरूरी है। - आज के अनुभवी लोग या वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले लोग सजेशन या ऑटोसजेशन का प्रयोग करते हैं। एक बात को बार-बार दोहराते हैं और अमुक परिस्थिति में दोहराते हैं तो वह बात हमारे अवचेतन मन तक पहुंच जाती है। जैसे श्वास का प्रयोग किया,कायोत्सर्ग का प्रयोग किया,खुमारी जैसी स्थिति हो रही है,नींद आ रही है. इन क्षणों में जो सुझाव दिये जाते हैं,चाहे स्वयं दं या कोई दूसरा व्यक्ति द, व सुझाव बहुत गहर में पहुंच जाते हैं और वे आदत को बदलने में बहुत कारगर बनते हैं। यह अनुप्रेक्षा का प्रयोग, भावना और सम्मोहन का प्रयोग आदत परिवर्तन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण उपाय बनता कायोत्सर्ग तीसरा तत्त्व है-कायोत्सर्ग। इसका एक अर्थ है-शिथिलीकरण। हम आज के इस एलोपेथिक और मेडिकल साइंस के जमाने में जी रहे हैं। इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि सारी कठिनाइयां मानसिक तनाव से पैदा होती हैं। बीमारियां, जटिल आदतें और चिन्तन की विकृतियां-इन सबके लिए जिम्मेवार होता है-मानसिक तनाव। शिथिलीकरण या कायोत्सर्ग एक प्रक्रिया है तनाव विसर्जन की। तनाव कम होता है तो उसके साथ-साथ ये समस्याएं भी सुलझती हैं। अधिकांश साइकोसोमेटिक बीमारियां तनाव के कारण होती हैं। जब तनाव कम होता है तब ये मनोकायिक बीमारियां अपने आप कम हो जाती हैं। अनिद्रा, चिन्ता, डिप्रेशन और इनसे होने वाली अनेक कठिनाइयां इस स्थिति में अपने आप मिट जाती हैं। एक व्यक्ति हृदयरोग से बहुत पीड़ित था। डाक्टरों का इलाज चल रहा था, किंतु बाद में उसने दवाइयों का रास्ता छोड़ा, दीर्घश्वास का प्रयोग शुरू किया। उस प्रयोग के बाद सारे परीक्षण करवाए तो डाक्टर ने कहा-तुम्हारा हृदय तो बिलकुल ठीक काम कर रहा है। कोई बीमारी नहीं है। जो धब्बे थे, वे भी समाप्त हैं। यह क्या बात है? क्या किया तुमने? हमारे सिद्धांत से यह तो हो ही नहीं सकता। उसने कहा-मैं दीर्घश्वास का प्रयोग कर रहा हूं और इससे यह सब ठीक हो गया। जब श्वास शिथिल होता है,शान्त होता है,साथ में शरीर शिथिल और शान्त होता है तो अनेक समस्याएं सुलझ जाती हैं, जटिल आदतों में भी परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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