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________________ ११ जीवन विज्ञान : स्वरूप और आवश्यकता इस संसार में सर्वत्र तारतम्य है। किसी भी एक श्रेणी को देखें, वहां तरतमता दृष्टिगोचार होगी। तारतम्य तर्कशास्त्र का प्रबल सिद्धांत है। इसके आधार पर 'अन्तिम' की बात की जाती है। जहां तरतमता समाप्त हो जाती है, वहां 'अन्तिम' की बात भी समाप्त हो जाती है। भारतीय दर्शन में जिस किसी तत्त्व पर विचार किया गया है, वह तरतमता के आधार पर ही किया गया है वहां चिंतन का तारतम्य है,तर्क-वितर्क का तारतम्य है और ज्ञान का तारतम्य है। प्रत्येक कार्य-क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की तरतमताएं देखी जाती हैं। इन तरतमताओं के आधार पर हमें उस बिन्दु को पकड़ना है जहां परिष्कार घटित हो सकता है। जीवन विज्ञान : मस्तिष्कीय परिष्कार अध्यापक के हाथ में अपरिष्कृत बच्चे आते हैं। उनमें तरतमता होती है, पर उन सबका परिष्कार किया जा सकता है। परिष्कार की प्रक्रिया के बिना शिक्षा-प्रणाली को संतुलित नहीं कहा जा सकता। हमारा यह आग्रह नहीं है कि यह परिष्कार जीवन विज्ञान की प्रणाली से ही आ सकता है। अनेक प्रणालियां हो सकती हैं, पर परिष्कार का विकल्प हमारे पास होना चाहिए। शिक्षा के साथ परिष्कार के सूत्र अवश्य जुड़े होने चाहिए, ताकि विद्यार्थी के अपरिष्कृत दृष्टिकोण, व्यवहार और भाव परिष्कृत बनते जाएं। विद्यार्थी छोटा बच्चा है। जब वह दूसरे को गाली देते देखता है तो उसके सामने गाली देने का ही विकल्प होता है। वह जानता ही नहीं कि गाली के सामने गाली नहीं देनी चाहिए। उसे कोई पीटेगा तो वापस पीटना ही उसका काम होगा। कोई दूसरा उसकी चीज उठाएगा तो वह दूसरे की चीज उठा लेगा, क्योंकि क्रिया की प्रतिक्रिया करना उसने सीखा है। अपरिष्कृत मस्तिष्क में एक ही सूत्र उत्पन्न होता है-क्रिया की प्रतिक्रिया करना, जैसे दूसरा करे, वैसे करना। जब परिष्कार आता है तब गाली के प्रति गाली न देना, जैसे के प्रति वैसा नहीं करना घटित होता है। अब्राहम लिंकन को कोई व्यक्ति नमस्कार करता तो वे टोप उतार कर उसके नमस्कार का उत्तर देते। एक दिन मित्रों ने कहा-राष्ट्रपति महोदय ! आप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। आपको मर्यादा की सुरक्षा करनी चाहिए। आप हर किसी व्यक्ति का टोप उतार कर अभिवादन करते हैं, यह उचित नहीं है। राष्ट्रपति लिंकन ने कहा-जानते हो, अमेरिका का राष्ट्रपति शिष्टता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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