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________________ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग बहुत उपयोगी है। तर्क, गणित और भाषा का जितना कार्य है, यह सारा बाएं हिस्से का कार्य है। आज मस्तिष्क पर और उसकी कार्य-प्रणाली पर प्रतिवर्षे अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो रहे हैं। उनमें अनेक रहस्योद्घाटन हुए हैं। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि मस्तिष्क की रचना और उसकी कार्यप्रणाली की पूरी जानकारी हो गई है। बहुत अल्प जानकारी हुई है और उसके आधार पर कहा जा सकता है कि मस्तिष्क का बायां हिस्सा बौद्धिक विकास के लिए उत्तरदायी है। प्रज्ञा का विकास, आन्तरिक वृत्तियों का विकास, अध्यात्मक और अन्तश्चेतना का विकास, यह सब दाएं मस्तिष्क का काम है। यहाँ इनके विकास और हास के लिए उत्तरदायी है। __ आज असंतुलन हो गया। बायां हिस्सा अधिक सक्रिय हो गया और दायां हिस्सा सोया का सोया रह गया। ऐसा हो गया कि आदमी का एक हाथ आकाश को छूने लग गया और एक हाथ बौना ही रह गया। यह असंतुलन समस्या पैदा कर रहा है। जीवन विज्ञान का एक कार्य यह भी है कि जैविक दृष्टिकोण से जो असंतुलन हो रहा है, उसे रोक कर संतुलन स्थापित करना। जीवन विज्ञान का दूसरा अर्थ है-जैविक संतुलन की स्थापना। क्षमता का आस्था का जागरण जीवन विज्ञान का तीसरा अर्थ है- क्षमता की आस्था का जागरण। आदमी स्वयं की क्षमताओं से अनभिज्ञ है। दर्शन की दृष्टि से कहा गया है कि मनुष्य में अनन्त ज्ञान होता है, अनन्त बल होता है, अनन्त आनन्द होता है। यह प्राचीन दर्शन की भाषा है, पर आज का विज्ञान इसी भाषा में बोलने लग गया है। अभी कुछ वर्ष पूर्व सुपर लर्निग की प्रणाली विकसित हुई थी। डॉ. लॉपनोव ने इस प्रणाली को जन्म दिया। उसका यह सिद्धांत है कि हमारे मस्तिष्क में सीखने की अनन्त क्षमता है। उसको विकसित किया जा सकता है। उसने प्रयोग किए। जो बच्चा पांच-दस शब्द याद करने में हिचकिचाता था, उसको इस प्रणाली से हजारों शब्द याद करा दिए। विज्ञान भी इसी निष्कर्ष तक पहुंचा है कि हमारे मस्तिष्क में अनन्त क्षमताएं हैं परन्तु आदमी उन क्षमताओं का पांच-सात प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है। जो दस प्रतिशत उपयोग करने लग जाता है, वह महान् व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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