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________________ १६८ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग दर्शन की भाषा में कहूं तो कर्म का विपाक, प्राचीन योग की भाषा में कहूं तो अमृत, सोमपान और आज की भाषा में अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों का स्त्राव -यह मनुष्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। कर्म का विपाक जिस-जिस क्षण में आता है व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसलिए कोई आदमी एक जैसा नहीं होता। पत्थर का टुकड़ा एक जैसा मिल सकता है। लंबे समय तक वैसा ही मिल सकता है। पर कोई भी चेतन प्राणी और विशेषत: मनुष्य एक जैसा नहीं मिलता। प्रात:काल में मनुष्य का जैसा चित्र था, सायंकाल तक उसमें हजारों मनुष्य पैदा हो गए। मनुष्य में हजारों मनुष्य पैदा हो गए । न प्रजनन की जरूरत, न माता-पिता की जरूरत, न कृत्रिम गर्भाधान की जरूरत ।आदमी में हजारों आदमी एक दिन में पैदा हो जाते हैं। जिस व्यक्ति को सूर्योदय के समय देखा, उस व्यक्ति का यदि फोटो लिया जाए, दो मिनट के बाद उस व्यक्ति को देखा जाए और उसका फोटो लिया जाए तो पता चलेगा कि यह तो दूसरा आदमी है ।इतना भीतर में बदल रहा है कि चेतन के लिए कोई नियंत्रण नहीं किया जा सकता, नियम नहीं बनाया जा सकता। विज्ञान ने पदार्थ-जगत् के लिए बहुत सारे नियम खोजे हैं किन्तु प्राणी-जगत् के लिए उनके नियम काम नहीं दे रहे हैं। यही तो मनुष्य की स्वतंत्रता है। वह जड़ पदार्थ नहीं, जो ढेले की भांति फेंकने पर ऊपर चला जाए और वापस नीचे गिर जाए। मनुष्य जड़ नहीं है । जड़ का नियम एक होता है और चेतन का नियम दूसरा होता है। चेतन में स्वतंत्र अस्तित्व होता है । उसकी स्वतंत्र सत्ता होती है । वह अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करता है ।जब अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करता है, उस समय कोई उसके लिए सार्वभौम नियम काम नहीं देता ।जो सर्वथा परतंत्र है, जिनमें अपनी क्षमता नहीं, अपनी स्वतंत्रता नहीं, उन्हें नियम के द्वारा बांधा जा सकता है और उनके लिए कोई सार्वभौम नियम बन सकता है, किंतु स्वतंत्रता से परिवर्तित होने वाले मनुष्य के लिए कोई सार्वभौम नियम नहीं बन सकता । ध्यान की शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता है । उस स्वतंत्रता को उभारना, उसे विकसित करना, यह ध्यान की शिक्षा का मुख्य तत्त्व है । ध्यान करने का अर्थ केवल आंखें बंद कर बैठ जाना ही नहीं है । केवल कुछ क्षणों के लिए विश्राम ले. लेना ही नहीं है, केवल मानसिक भार को कम कर देना मात्र नहीं है । ऐसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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