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________________ १४९ संवेग-संवेद और नियन्त्रण की पद्धति विकास का मार्ग एक संन्यासी या तपस्वी के लिए संवेद-नियंत्रण करना आवश्यक है। उसे इन्द्रिय-संयम भी करना चाहिए। किन्तु न केवल संन्यासी को, जीवन में सफलता चाहने वाले सभी व्यक्तियों को, एक सीमा तक संवेदनाओं पर नियंत्रण करना चाहिए। जब इंद्रिय-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं होता तब बहुत सारे बुरे परिणाम आते हैं। जीभ की संवेदनाओं पर नियंत्रण न करने से अनेक बीमारियां होती हैं। लगभग पचास प्रतिशत बीमारियां जीभ की संवेदनाओं के कारण होती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में भी यह बात पहले से ही मान्य थी, आज एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में भी यह स्वीकृत हो गई है। हार्ट ट्रबल या ऐसी अन्य बीमारी होने पर डॉक्टर सबसे पहले खाद्य पदार्थों पर प्रतिबन्ध लगाता है। वह कहता है- चिकनाई मत खाओ, घी मत खाओ, नशीली वस्तुओं का सेवन मत करो। बीमारी के साथ भोजन का गहरा संबंध है। भोजन का मानसिक शक्ति के साथ गहरा संबंध है। __ दृष्टि का संवेदन है देखना। यह भी एक समझने की बात है कि कब देखना चाहिए ? क्या देखना चाहिए ? आंख के द्वारा पदार्थ के साथ हमारा सम्पर्क स्थापित होता है। हम केवल देखते ही नहीं, ग्रहण भी करते हैं। दृष्टि का संवेदन भावों को बहुत प्रभावित करता है। 'जो देखने योग्य नहीं है, उसे नहीं देखना चाहिए'- यह भारतीय चिन्तन की परम्परा रही है। कहा हैदृष्टिपूतं न्यसेत् पादम्- 'आंखों से देखकर चलो।' यदि आदमी आंखों से देखकर चलता है तो शक्तियां कम क्षीण होती है। यदि चलते समय कभी इधर और कभी उधर देखते हैं, दूर तक देखते हैं तो मस्तिष्क की बहुत शक्ति क्षीण होती है। देखने का नियम है. कि सीधे देखो, दाएं-बाएं देखना उचित नहीं है। जिस व्यक्ति का अपनी संवेदनाओं पर नियंत्रण होता है वह बहुत आने बढ़ जाता है। जिसमें नियन्त्रण की पूरी क्षमता नहीं होती, एक सीमा तक होती है, वह मूल स्थिति में कायम रह जाता है। जो संवेदनाओं का दास बन जाता है, वह अपने जीवन की दुर्गति कर बैठता है। उसका अधःपतन होता है। हम इस सचाई का अनुभव करें कि संवेदनाओं पर नियंत्रण किए बिना जीतन में विकास नहीं किया जा सकता। यदि इस स्थिति का साक्षात्कार करना हो तो पश्चिमी जगत् की यात्रा करें। वहां एक नया दर्शन मिलेगा। इतना बौद्धिक विकास, वैज्ञानिक दृष्टि का विकास और धन तथा सुख-सुविधा की सामग्री होने पर भी, इन्द्रियों की: उच्छृखलता के कारण वहां स्थिति अत्यन्त दु:खद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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