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________________ संवेग संवेद और नियन्त्रण की पद्धति १४७ ने वैसा ही किया। खिड़कियों, दरवाजों आदि को गुलाबी रंग से रंग दिया। कुछ ही समय पश्चात् विद्यार्थियों में परिवर्तन आने लगा। उनकी उद्दंडता और चंचलता कम हो गई। नीले, पीले और गुलाबी रंग का ध्यान संवेगों पर प्रभाव डालता है, उनका परिष्कार करता है। एक आस्था उत्पन्न करने की आवश्यकता है। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निर्माण की जरूरत है। यदि हम इस बात को स्थूल दृष्टि से पकडेंगे कि गुलाबी रंग को देखने से क्या होगा ? कैसे दिखेगा गुलाबी रंग ? पर यदि वैज्ञानिक दृष्टि से सोचेंगे तो हम अपने संकल्प के द्वारा वैसा रंग पैदा कर सकते हैं। रंग के परमाणु चारों ओर बिखरे पड़े हैं। जहां प्रकाश है, सूर्य की रश्मियां हैं, वहां चारों ओर रंग ही रंग है। पेड़-पौधो में रंग कहां से आता है ? अंधेरे में हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता । सूर्य की रश्मियां आते ही रंग दीखने लग जाते हैं। रंग कहां से आए ? रंग सर्वत्र हैं। पीनियल ग्लेण्ड प्रकाश-संश्लेषी है। वह रंगों को पकड़ता है। वह प्रकाश में अधिक काम करता है। वह प्रकाश को ग्रहण करता है। अर्थात् रंग को ग्रहण करता है। उससे हम अत्यधिक प्रभावित होते हैं। लाल रंग के कमरे में एक सप्ताह रह कर देखें, सिरदर्द से पीड़ित हो जाएंगे। सफेद रंग में ऐसा नहीं होता । काले रंग से जटिलताएं और बढ़ जाती हैं। हमारे में रंगों को पकड़ने की शक्ति है, क्षमता है। रंग संवेगों को उद्दीप्त करते हैं और शांत भी करते हैं। रंगों में उद्दीपक और शामक - दोनों शक्तियां हैं। संवेग परिष्कार में रंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विधायक दृष्टिकोण चौथा प्रयोग है - दृष्टिकोण का विधायक होना । निषेधात्मक दृष्टि कोण से संवेग उद्दीप्त होते हैं। हम विद्यार्थियों में इस प्रकृति को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करें कि उनमें रचनात्मक या विधेयात्मक दृष्टि का जागरण हो । उनकी निषेधक दृष्टि कमजोर हो और विधायक दृष्टि बलवान् बने। जो अभाव की ओर देखता है, यह निषेधात्मक भावों से भर जाता है। उसे कितना ही मिल जाए उसका नेगेटिव एटीट्यूड कभी नहीं मिटेगा । जिसका एटीट्यूड पोजिटिव हो गया, भावात्मक हो गया, वह व्यक्ति बदल जाएगा। विधायक दृष्टिकोण के द्वारा संवेगों का संतुलन साधा जा सकता है। जब संवेग संतुलित होते हैं तब चरित्र का विकास होता है, जीवन का निर्माण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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