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________________ १३५ शिक्षा और मुक्ति की अवधारणा सकती है, पर कोई आदमी आत्महत्या करने के लिए पांचवीं मंजिल से गिरेगा तो वह अनजान में नहीं गिरेगा। वह तो जानबूझकर ही गिरेगा। कभी चलते-चलते दुर्घटना हो सकती है। पर रेल के सामने जाकर सोना अनजान में नहीं होता। आदमी अधिकांश गलतियां जानबूझकर ही करता है, अनजान में गलतियां कम होती हैं। प्रश्न होता है-आदमी जानबूझकर गलती क्यों करता है ? वह गलती इसलिए करता है कि संवेग पर उसका नियंत्रण नहीं है। संवेग का जैसा दबाव होता है, वह वैसे ही करता है। इसलिए शिक्षा के द्वारा क्या हम अज्ञान को मिटाने का ही प्रयत्न करें या संवेग पर नियन्त्रण स्थापित करना भी सीखें? इसका उत्तर हमें खोजना होगा। यदि हम इस बिन्दु पर ही अटके रह गए कि केवल अज्ञान को मिटाना है, बौद्धिक विकास करना है तो स्वस्थ समाज के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती और समाज व्यवस्था के परिवर्तन की बात नहीं सोची जा सकती। शासन प्रणाली बदलना ही पर्याप्त नहीं ___ आदमी ने राजतन्त्र को बदला और उसके स्थान पर जनतन्त्र ले आया। पर, हुआ क्या ? प्रणाली बदल गई पर आदमी तो नहीं बदला। जनतंत्र की प्रणाली में सत्ता पर बैठने वाला जानता है कि मैं स्थाई नहीं हूं, जन्मना शासक नहीं हूं। मुझे कोई पैतृक अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है। पर उसके मन में दूसरी भावना घर कर गई कि जितना अवकाश प्राप्त होता है उतना लाभ उठा लेना चाहिए। राजतंत्र में राजाओं का जो वैभव था, जो ठाटबाट था, आज जनतंत्र के शासक में उससे कम नहीं है, उससे अधिक वैभव और ठाटबाट है। पहले छोटे-छोटे राज्य होते थे, रियासतें होती थीं, सीमित आय और सीमित व्यय होता था। राजस्थान में कितनी रियासतें थी। आज पूरा राजस्थान एक बड़ा प्रांत (राज्य) बन गया। असीम शक्ति केन्द्रित हो गई। आज राजस्थान का जो शासक है, उसके हाथ में अपार शक्ति आ गई, जिसकी कल्पना छोटी-छोटी रियासतों वाले राजा नहीं कर सकते। यह स्थानान्तरण तो हुआ, राजा के स्थान पर दूसरा जनतंत्री शासक आ गया, पर व्यक्त्यंतरण नहीं हुआ, रूपान्तरण नहीं हुआ। व्यवस्था का परिवर्तन तो हुआ, पर हृदय का परिवर्तन नहीं हुआ। प्रश्न है व्यक्तित्व के रूपान्तरण का। कोर्स पूरा नहीं है ___ आज जो प्रश्न धर्म के सामने हैं, वे ही प्रश्न शिक्षा के सामने भी हैं। धर्म के सामने एक प्रश्न आता है कि आज इतने धर्म हैं, धर्मगुरु हैं, प्रवचन और क्रियाकांड हैं, फिर भी आदमी वैसा का वैसा है। अनैतिकता बढ़ी है, पटी नहीं, फिर धर्म की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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