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________________ शिक्षा और मुक्ति की अवधारणा मुक्ति वर्तमान क्षण में शिक्षाजगत् का प्रसिद्ध सूत्र है-'सा विद्या या विमुक्तये'- विद्या वही है जिससे मुक्ति सधे। मुक्ति के अर्थ को हमने एक सीमा में बांध दिया। हमने उसे मोक्ष के अर्थ में देखा। मोक्ष की बात बहुत आगे की है, मरने के बाद की है। जिसको जीते जी मुक्ति नहीं मिलती, उसको मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिल सकती। वर्तमान क्षण में मुक्ति मिलती है तो वह आगे भी मिल सकती है। जो वर्तमान क्षण में बंधा रहता है, उसे आगे मुक्ति मिलेगी, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुक्ति का एक व्यापक संदर्भ है। उसे हमें समझना है। उसे समझ लेने पर हमारा दृष्टिकोण बहुत कार्यकर होगा। मुक्ति : व्यापक संदर्भ शिक्षा के क्षेत्र में मुक्ति का पहला अर्थ है-अज्ञान से मुक्त होना। अज्ञान बहुत बड़ा बन्धन है। अज्ञान के कारण ही व्यक्ति अनेक अनर्थ करता है। इसे आवरण माना गया है आवरण बन्धन है। शिक्षा का पहला काम है-इस बन्धन से मुक्ति दिलाना, अज्ञान से मुक्त करना। इस परिप्रेक्ष्य में हम कहेंगे-'सा विद्या या विमुक्तये'शिक्षा वह है, जो अज्ञान से मुक्त करती है। मुक्ति का दूसरा संदर्भ है-संवेगों के अतिरेक से मुक्ति। आदमी में संवेग का अतिरेक होता है और वह आदमी को पकड़ लेता है, आसानी से नहीं छूटता। जब तक व्यक्ति वीतराग अवस्था को प्राप्त नहीं हो जाता तब तक वह संवेगों से पूर्णरूपेण छुटकारा नहीं पा सकता। संवेगों के अतिरेक के कारण आदमी दूसरों के लिए सिर दर्द बन जाता है। ऐसी स्थिति में यह स्वयं प्राप्त होता है कि शिक्षा उसे संवेग के अतिरेक से मुक्त दिलाए। इसका अर्थ है कि मनुष्य में संवेगों पर नियन्त्रण करने की क्षमता बढ़े जिससे कि संवेगों की प्रचुरता न रहे। वे एक सीमा में आ जाएं। - मुक्ति का तीसरा संदर्भ है-संवेदों के अतिरेक से मुक्ति। इंद्रियों की जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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