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________________ १०४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग केवल उपदेश या प्रशिक्षण के द्वारा उसे नहीं मिटाया जा सकेगा। हम यह नहीं कहते कि बौद्धिकता का विकास न हो, पर साथ ही साथ उस पर नियन्त्रण करने के लिए अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों को जगाना पड़ेगा। उन पर ध्यान देकर ही अपराधी वृत्तियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। छोटे बच्चे सहयोग करते हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि अभी तक उनका बौद्धिक विकास नहीं हुआ है। जब भी बौद्धिक विकास हो जाता है, वे आपका सहयोग नहीं करते। इसीलिए तो केवल बौद्धिक विकास खतरनाक आज हमारे सामने चुनाव का सवाल है एक और बौद्धिक विकास करने वाली शिक्षा है, दूसरी ओर धर्म-शास्त्रों की शिक्षा है। केवल बौद्धिक शिक्षा या केवल धर्म-शास्त्रों की शिक्षा बड़ा परिवर्तन नहीं कर सकेगी, किन्तु वह धर्म भी हमारा बहुत अधिक मार्ग-दर्शन नहीं करेगा, जो विज्ञान की कसौटी पर नहीं कसा जा सके। आज विज्ञान ने हमारे सामने जो बहुमूल्य सामग्री प्रस्तुत की है, उसकी छाया में धर्म-शास्त्रों की शिक्षाओं तथा पुस्तकीय शिक्षाओं का प्रायोगिक रूप में उपयोग किया जा सके तो हम नयी पीढ़ी का निर्माण कर सकेंगे, सर्वांगपूर्ण स्वस्थ व्यक्तियों का निर्माण कर सकेंगे। हम अपनी जीवन की धारा को दो तटों के बीच चला रहे हैं। एक है समस्या का तट और दूसरा है अपेक्षा का तट। अनेक समस्याएं हैं, जैसे- हिंसा, तनाव, मानसिकता, अनैतिकता, मिथ्यादृष्टिकोण आदि। इनमें सबसे बड़ी समस्या है-मिथ्यादृष्टिकोण। आवश्यकता है आंख की मनुष्य का एक मिथ्यादृष्टिकोण बन गया-समस्या का समाधान हिंसा में है। वह हिंसा को चुनता है। उसने हिंसा को ऐसा हथियार बना लिया है कि कहीं पर भी उसका उपयोग किया जा सकता है। हिंसा सर्वत्र व्याप्त है। प्रत्येक क्षेत्र, फिर चाहे वह राज्य का हो, राजनीति का हो या शिक्षा का, हिंसा का बोलबाला है। आज अहिंसा की अपेक्षा है। पर प्रश्न होता है कि वह आए कैसे? इसके लिए आवश्यकता है दृष्टिकोण को बदलने की, चक्षुष्मान् बनने की। आज आंख की परम आवश्यकता है। अन्यान्य वस्तुएं मिल सकती हैं पर आंख का मिलना, दृष्टि का मिलना अत्यन्त कठिन है। आजकल आंख का प्रत्यारोपण होने लगा है, चक्षुदान भी प्रचलित है। इसीलिए आंख मिलने लगी है। आदमी को चक्षुष्मान् बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। हिंसा, अनैतिकता आदि सारी समस्याएं भी मिथ्यादृष्टिकोण के कारण उभर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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