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________________ १०२ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग हम चाहते हैं कि छात्रों में एकाग्रता, इच्छाशक्ति तथा संकल्प का विकास हो। इसके लिए विशेष प्रयत्न किए जाने चाहिए। क्या कारण है कि सत्तर करोड़ की आबादी वाले भारत को खेलों में स्वर्ण पदक तो क्या रजत पदक भी नहीं मिल पाते, और कोरिया जैसे छोटे-छोटे देश भी अनेकों स्वर्ण पदक झटक लेते हैं। स्पष्ट है, हमारे यहां एकाग्रता, संकल्प तथा इच्छा-शक्ति का अभाव है। जब तक इनका विकास नहीं हो जाता तब तक देश आगे नहीं बढ़ सकता। ___ आज शिक्षा में फिजिकल और मेंटल विकास की तो शिक्षा दी जाती है पर इमोशनल विकास की बात नहीं की जाती, जबकि तीनों में सबसे मूल्यवान यही है! इसीलिए तो मूल में भूल हो रही है। जीवन विज्ञान इसी भूल को सुधारने का प्रयत्न हमारा यह उद्देश्य नहीं है कि धर्म-ग्रंथों के उदाहरण न लें। पर हम उन्हें पर्याप्त नहीं मानते। वे प्रेरक तो बन सकते हैं, पर बदलाव के वाहक नहीं बन सकते और आज तो प्रश्न ही यह है कि जीवन में बदलाव कैसे आये ? जब तक हारमोन व सिक्रेसन को नहीं बदला जाएगा तब तक सारा विकास अधूरा व एकांगी रहेगा। हमारा ध्यान इस ओर क्यों नहीं जाता कि आंतरिक बदलाव के बिना सारे प्रयत्नों का केवल क्षणिक प्रभाव ही हो सकता है। धर्म-शास्त्रों में जो समाधान दिए गए हैं, वे एक परिस्थिति से जुड़े हुए हैं। वे समाधान ही एकमात्र समाधान नहीं हो सकते। इसका मतलब यह नहीं है कि शास्त्रों के समाधान गलत हैं, पर समस्याएं यदि आज की हैं तो उनके समाधान भी इसी संदर्भ में खोजे जाने चाहिए। आज पदार्थ-विज्ञान, मनोविज्ञान, शरीर-विज्ञान जिस तरीके से विकसित हो गये, उनसे भी समस्याओं के समाधान मिल सकते हैं। जहां तक धर्म-शास्त्रों से समाधान मिलें, मिल जाएं, पर धर्म-ग्रन्थ के नाम पर आधुनिक उपलब्धियों से परहेज नहीं किया जाए, यह जीवन विज्ञान का स्पष्ट मत जीवन विज्ञान : जीवन से जुड़ी शिक्षा अज्ञान और मूर्छा दो भिन्न तत्त्व हैं। अज्ञान से केवल इतना ही होता है कि व्यक्ति को ज्ञान नहीं होता, पर मूर्छा से व्यक्ति का व्यवहार और चरित्र भी प्रभावित होता है। आज शिक्षा का सारा आयोजन मनुष्य के अज्ञान को गिराने का, उसे आंकड़ों का ज्ञान करा देने मात्र का है, पर मूर्छा को हटाने का कोई उपाय नहीं है। ऐसी शिक्षा से मनुष्य में अनुशासन नहीं आ सकता! इसके लिए द्विआयामी बनाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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