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________________ वह अपनी पुरुषार्थ-चेतना अधिक-से-अधिक जगाने का प्रयत्न करता है। जहां पुरुषार्थ फलदायी नहीं होता, वहां भी उसे निराशा अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाती। वह इस आस्था के साथ अपने पुरुषार्थ का दीप सतत प्रज्वलित रखता है कि आज न सही कल, कल न सही परसों..... कभीन-कभी तो सफलता अवश्य मिलेगी। ऐसी स्थिति में वह कभी अकर्मण्य नहीं बनता। अहितकारी है ज्योतिष पर अति विश्वास जो लोग नियति को ही सब-कुछ मानते हैं, पुरुषार्थ को बिलकुल ही स्वीकार नहीं करते, वे ज्योतिष पर अति विश्वास करने लगते हैं। हालांकि ज्योतिष की बहुत-सी बातें ज्यों-की-त्यों मिल जाती हैं, तथापि उसके आधार पर पुरुषार्थहीन बनकर बैठ जाना, मेरी दृष्टि में उचित नहीं है। मैं देखता हूं, कई व्यक्ति ज्योतिष पर अति विश्वास कर निठल्ले होकर बैठ जाते हैं और अंततः सब-कुछ गंवाकर भूखे फकीर बन जाते हैं। इसी लिए हमारे आचार्यों ने कहा कि ज्योतिष तो तुक या तुस के समान है। बताई हुई बात यथार्थ हो जाए तो तुक मिल जाती है, अन्यथा तुस हो जाती है। इसलिए इस पर अति विश्वास नहीं करना चाहिए, इसे अंतिम नहीं मानना चाहिए, इससे चिपककर नहीं रहना चाहिए। मेरे जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई हैं, जिनसे ज्योतिष पर विश्वास जम सकता है, पर मैं उसके आधार पर नहीं चलता। भृगु संहिता में मेरे बारे में अमुक बात लिखी गई है यह मैं तब देखता हूं, जब वह काम संपादित कर लेता हूं। पहले देख लूं तो शायद उसे करने का प्रयास ही न हो। हां, मैं यह अवश्य मानता हूं कि ज्योतिष एक विज्ञान है। उसका किसी को सही और गंभीर ज्ञान हो तो बहुत-सी बातें यथार्थ रूप में जानी जा सकती हैं। बावजूद इसके, ज्योतिष की बात अंतिम मानना मैं समझदारी नहीं कह सकता। प्रसंग माणकगणी का __ ज्योतिष के आधार पर आयुष्य का विश्वास करना तो कई बार बहुत बड़ी कठिनाई पैदा कर सकता है। हमारे धर्मसंघ के षष्टमाचार्य माणकगणी का उदाहरण सामने है। दिवंगत होने से पूर्व अपने उत्तराधिकारी की व्यवस्था वे इसी कारण तो नहीं कर पाए थे कि ज्योतिष के अनुसार उनकी आयु साठ वर्ष थी। इसलिए वे निश्चिंत थे। जब अंतिम समय में उनसे संघ की भावी व्यवस्था करने के लिए निवेदन किया गया .४६. आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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