SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवी सुनंदा मगधपति के सत्कार योग्य सारी व्यवस्था को पूर्ण कर उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रही थीं। चित्रप्रासाद की चारों दिशाओं में स्वर्ण की दीपमालिकाएं प्रकाश बिखेर रही थीं। कोशा के तीनों वाद्यनियोजक-सोमदत्त, सोल्लक और दक्षक नृत्यभूमि में वाद्यों को यथास्थान नियोजन कर रहे थे। चारों ओर लोग कार्यरत थे। देवी सुनन्दा प्रांगण में प्रतीक्षारत बैठी थी। इतने में ही द्वारपाल ने आकर कहा- 'देवी! आचार्य कुमारदेव और चाणक्य आ रहे हैं।' देवी सुनन्दा ने अगवानी कर गुरुदेव का भावभीना सत्कार किया। आचार्य ने पूछा- 'कोशा स्वस्थ तो है न?' 'जी हां।' 'क्या कर रही है?' 'रूपसज्जा।' 'किस नृत्य का आयोजन किया है?' 'महाभिनिष्क्रमण नृत्य का। आपकी आज्ञा के अनुसार ही सारी तैयारियां हो रही हैं।' 'नृत्य का सहयोग देने के लिए केतु आ गया होगा?' 'जी हां....चित्रा, हंसनेत्रा और मालिनी भी सहयोग देंगी।' 'बहुत अच्छा। महाभिनिष्क्रमण नृत्य में कोशा को पूर्ण सफलता मिलेगी।' आचार्य ने चाणक्य की ओर मुड़कर कहा- 'यह देवी सुनन्दा है, कोशा की जननी और मगधेश्वर की राजनर्तकी।' देवी सुनन्दा की ओर दृष्टिपात करते हुए कहा- 'ये मेरे मित्र चणक के पुत्र हैं। इस छोटी-सी अवस्था में भी सर्वशास्त्रों के पारंगत हैं। ये महामात्य के प्रिय शिष्य हैं।' देवी सुनन्दा ने चाणक्य को नमस्कार किया और वह उन्हें अतिथिगृह में ससम्मान ले गई। और..... आर्य स्थलभद और कोशा ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy