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________________ मुचकुन्द पुष्पों की मृदु शय्या पर सोने पर भी कोशा नींद नहीं ले सकी। वातायन से आने वाला मलयज उसके लावण्यमय शरीर का स्पर्श कर रहा था मानो ऐसा सुखद स्पर्श सद्भाग्य से वायु को ही प्राप्त हुआ है। कोशा का मन संकल्प-विकल्प से जटिल हो रहा था। माता के संसार-त्याग की बात उसको चिन्तित कर रही थी। राजनर्तकी का प्राप्त होने वाला पदगौरव उसके हृदय में उमंग भर रहा था। मगधेश्वर की शर्त उसे कठोर बनने का पाठ पढ़ा रही थी। इस शर्त का विचार उत्पन्न होते ही उसकी स्वप्निल आंखों के समाने एक नौका खड़ी हुई। उस नौका में महामंत्री शकडाल के पुत्र आर्य स्थूलभद्र बैठे थे-सुन्दर वदन.....बलिष्ट शरीर। ओह, एक ओर स्थूलभद्र की कल्पना.....दूसरी ओर मगधेश्वर की निर्दय शर्त! जीवन की दो भिन्न दिशाएं। क्या करना है ? स्थूलभद्र को मन से निकाल देना है या राजनर्तकी के पदगौरव को तिलांजलि दे देना है? पागल नारी! विचारों की आंधी में फंसी हुई कोशा को यह भान भी नहीं था कि उसने अभी तक स्थूलभद्र को देखा तक नहीं है....उनकी दृष्टि में अभी तक वह समायी है या नहीं-यह भी पता नहीं था। स्थूलभद्र स्वयं के बन सकेंगे या नहीं-यह तो वैशाखी बादल जैसा ही क्षणभंगुर प्रश्न था। और..... राजनर्तकी का पदगौरव भी कहां प्राप्त हो पाया है? मनुष्य का मन जब विचारों के झूले में झूलने लगता है तब उसकी कल्पनाएं अनन्त हो जाती हैं। कोशा के हृदय में अनन्त कल्पनाएं उभर रही थीं। वे उठतीं और नष्ट हो जातीं। राजराजेश्वर को भी ईर्ष्या हो ऐसी भव्य समृद्धि, समूचे विश्व में ईर्ष्या करने योग्य रूप, अपूर्व कला की साधना, जिसमें रसभरपूर काव्य डोल रहे हों ऐसा गुलाबी यौवन.....और मगध की कलालक्ष्मी के समान राजनर्तकी का पद-गौरव! ओह ! यह सब सुन्दर है.....अति सुन्दर.....परन्तु जीवनसाथी के बिना इस सुन्दरता का मल्य ही क्या है ? पुरुषविहीन स्त्री के सुखोपभोग आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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