SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुख-समृद्धि, आनन्द-ऊर्मि और औजस के रजकणों से चारों दिशाएं प्रफुल्लित हो रही थीं। __ राजसभा के कार्य से निवृत्त होकर अभी-अभी मगध-सम्राट राजप्रासाद में आए हैं। इनके साथ महामंत्री शकडाल भी हैं। गांधार राज्य के विषय में मंत्रणा करने के लिए दोनों मंत्रणागृह में गए हैं। मंत्रणागृह के द्वार पर महाप्रतिहार विमलसेन सावधान होकर खड़े हैं। एक ओर अनेक परिचारक और परिचारिकाएं सब आज्ञा की प्रतीक्षा में पंक्तिबद्ध खड़े हैं। महाप्रतिहार के मस्तक पर स्वर्ण मुकुट है। शरीर पर केसरिया उत्तरीय और लाल किनारी वाली रेशमी धोती है। गले में मुक्ता की माला, हाथ में बाजूबन्ध, कंधों पर धनुष और कमर में तलवार लटक रही है। कुछ ही दूरी पर चार प्रहरी नंगी तलवारें लेकर खड़े हैं। मंत्रणागृह में शांत वातावरण है। महामंत्री अत्यन्त वृद्ध हैं। उनके सभी वस्त्र श्वेत हैं। उनकी अंगुलियों में हीरे की मुद्रिकाएं चमक रही हैं। गले में नीलम रत्नों की एक माला चमक रही है। कपाल पर केसरी चन्द्रक शोभित हो रहा है। ___मगध-सम्राट् के वस्त्र ग्रीष्म ऋतु के अनुकूल अत्यन्त मुलायम और केसरिया रंग के हैं। हीरकजड़ित बाजूबन्ध, मणिमय कड़े, रत्न की मालाएं, चन्दन का प्रलेप, रत्नजड़ित मुकुट आदि-आदि आभूषण सम्राट् की भव्यता को शतगुणित कर रहे थे। गांधार में विजय प्राप्त करने के पश्चात् वहां की अव्यवस्था पर विचार-विमर्श हो रहा हो, ऐसा लगता है। गांधार के ब्राह्मण गांधार के राजा के साथ मिलकर जैन और बौद्ध सम्प्रदाय के समक्ष कुछ चुनौती प्रस्तुत करने में लगे हैं। इस चुनौती के माध्यम से मगध-सम्राट् के विरोध में जनमत संग्रह कर एक क्रान्ति करने की योजना बन रही है। इन सब विषयों की गुप्त मंत्रणा हो रही है। दो घटिका के बाद मंत्रणा सम्पन्न हुई। मगधपति ने महाप्रतिहार को बुलाया। विमलसेन ने मगध-सम्राट् को नमस्कार किया। आज्ञा की प्रतीक्षा में दूर खड़ा रहा। मगधेश्वर ने कहा-'विमल! आज सायं महासेनापति सौरदेव महामात्य के घर जाएं, ऐसी व्यवस्था करो।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy