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________________ 'महामात्य शकडाल संसारी होते हुए भी संसार से परे हैं, इसे तुम भूल मत जाना। संसार के सारे सुखों में ऐसी शक्ति है, जो सचे सुख का भाव कराती है। तुम केवल आत्मदृष्टि से ही क्यों सोचते हो? अतीत और वर्तमान के अनेक महापुरुषों का जीवन तुम्हारे समक्ष है। इस पर तुम पुन: चिन्तन करो।' चाणक्य ने वक्रदृष्टि से स्थूलभद्र को देखते हुए कहा। इतने में ही सेनापति ने कहा- 'प्रभो ! हमारी नौका कुक्कुटाराम विहार के पास पहुंच गई। 'नौका को घाट पर ले चलो।' चाणक्य ने कहा। स्थूलभद्र बोला-'क्या विहार में जाना है?' 'नहीं, हम घाट पर स्नान कर लौट चलेंगे। अभी सूर्योदय नहीं हुआ है....' कहते हुए चाणक्य ने अपना उत्तरीय वस्त्र संभाला। स्थूलभद्र ने पूर्व की ओर देखा। उषा का प्रकाश विस्तृत हो रहा था। प्रथम सुहागरात्रि के पश्चात् प्रभातवेला में जो लज्जा नववधू के चेहरे पर उभरती है, वैसी लालिमा पूर्वाकाश में छितर रही थी। नौका घाट पर लगी। स्थूलभद्र और चाणक्य-दोनों नौका से उतरे। स्थूलभद्र का अंगरक्षक उद्दालक कपड़े लेकर स्थूलभद्र के पीछे-पीछे चला। घाट पर एक-दो कृषक-कन्याएं पानी भर रही थीं। 'चित्रा!' चित्रा उस समय रूपकोशा के शृंगारभवन के वातायन से गंगा के प्रवाह को एकटक निहार रही थी। वह अपनी स्वामिनी का स्वर नहीं सुन सकी। अनेकविध पुष्पों से गुंधे हुए वस्त्रों को धारण कर रूपकोशा एक आसन पर बैठी थी। उसने पुन: तेज स्वर में कहा- 'चित्रा! क्या तू नहीं सुन रही है?' ___चित्रा ने भयभीत आंखों से देवी की ओर देखते हुए कहा-'क्षमा करो, देवी! स्थूलभद्र की नौका अपने प्रासाद से गुजर रही है। उसमें उद्दालक बैठा है। उसकी ओर मेरी दृष्टि.....अच्छा देवी! क्या आज्ञा है?' आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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