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________________ ४. कला का पुजारी रात्रि का अन्तिम प्रहर। आकाश निर्मल था। चांदनी मदभरी थी। वायु मंद और शीतल थी। वैशाख की तापमय रात्रि कुछ शीतल बनी थी। महामंत्री शकडाल के प्रासाद से सटकर बहने वाली गंगा का कलरव स्पष्ट सुनाई दे रहा था। मंत्री के प्रासाद के उपवन की दीवार के पास बने घाट पर चारपांच नाविक खड़े थे। मयूराकृति की एक सुन्दर नौका खड़ी थी। नौका में भी चार-पांच नाविक बैठे हुए थे। एक युवक उपवन के द्वार पर खड़ा था। उसके हाथ में धनुष था। वह प्रसन्न दिख रहा था। युवक ने नाविकों की ओर दृष्टि कर कहा, 'सेनापति! नौका तैयार है?' 'जी हां, सब कुछ तैयार है।' मुख्य नाविक ने कहा। 'कुमार स्थूलभद्र अभी आ रहे हैं। तुम सब तैयार रहना। उनके साथ विष्णुगुप्त भी आ रहे हैं। यदि कहीं तनिक भी कसर रह गई तो सबकी जान ले लेंगे।' सेनापति कुछ कहे, उससे पूर्व ही किसी के पदचाप सुनाई दिए। द्वार पर खड़े नवयुवक ने कहा- 'आ रहे हैं। सब तैयार हो जाओ....!' थोड़े समय बाद ही स्थूलभद्र और चाणक्य उपवन के द्वार के पास आ पहुंचे। नवयुवक ने दोनों को नमस्कार किया। स्थूलभद्र ने पूछा'नौका तैयार है?' नवयुवक उद्दालक ने कहा- 'हां, महाराज! आपके पधारने की ही देरी है।' दोनों युवक घाट के सोपान मार्ग से नौका के पास आए। उद्दालक पीछे-पीछे आ रहा था। स्थूलभद्र और चाणक्य, दोनों नौका में बैठे। आर्य स्थूलभद्र और कोशा २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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