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________________ ३. पिता की वेदना गंगा का सुरम्य तट। मंत्री-प्रासाद की रमणीयता। उसके सर्वोच्च शिखर पर अठखेलियां करने वाली सूर्य की किरणें अभी-अभी अदृश्य हुई थीं। सूर्य अस्ताचल में जा छिपा था। ___ महात्मा कल्पक का यह भव्य प्रासाद ‘मंत्रीप्रासाद' के नाम से पाटलीपुत्र में ही नहीं, समूचे मगध देश में विख्यात था। प्रासाद के अनेक खण्ड और उपखण्ड थे। प्रत्येक खण्ड में सुवर्ण की धूपदानियां रखी हुई थीं। उनमें सिद्धकल्याण' नामक रोगहर, अनिष्टहर और सुखकर धूप जल रहा था। उसके धूप से चारों दिशाएं व्याप्त थीं। सिद्धकल्याण धूप की सौरभ भी मन को आह्लादित और प्रशान्त करने वाली थी। इस धूप का आविष्कार मगध के एक राजवैद्य ने किया था। प्रासाद के परिचारक रत्नजटिल स्वर्ण दीपों को एरंड के तेल से जला रहे थे। एरंड के तेल में उजवली नाम की औषधि का मिश्रण था, इसलिए प्रकाश बहुत तेज हो रहा था। प्रासाद की पूर्व दिशा में महात्मा कल्पक ने एक जिनालय का निर्माण किया था। उसमें भगवान महावीर की भव्य प्रतिमा थी। प्रतिमा के सम्मुख रत्नदीपिकाएं प्रकाश फैला रही थीं। महात्मा शकडाल का छोटा पुत्र श्रीयक चरम तीर्थंकर भगवान महावीर की आरती उतार रहा था। उसमें एक सौ आठ दीपक जल रहे थे। महामात्य शकडाल की सात कन्याएं थीं-यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, एणिका, केणा और रेणा। ये सातों कन्याएं हाथों में धूपदानियां और चामर लेकर जिनेश्वर भगवान की भक्ति में लीन हो रही थीं। १६ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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