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________________ सभी मनुष्य इस दृश्य को स्तब्ध नयनों से देख रहे थे। रुदन को रोककर कोशा हृदय-विदारक करुणा स्वर में बोली- 'स्वामी ! नाथ! प्रियतम ! मेरे पर दया करो। चित्रा! मेरे में मेरे प्रियतम को रोकने की शक्ति नहीं रही। तुम मुझे बचाओ । मेरे प्राणेश्वर को रोको। मेरे सत्त्व को पकड़कर बांध दो। जाओ....जाओ....हाय! आज मैं लुट गई, कंगाल हो गई!' कहतीकहती कोशा मूर्छित होकर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी। कोशा के सारे परिचारक, वाद्यकार और नृत्यमंच की व्यवस्था करने वाले सभी लोग अश्रुपूरित नेत्रों से स्थूलभद्र के रक्तरंजित मुंडित सिर को देख रहे थे। आर्य स्थूलभद्र के नयनों में कोई अद्भुत भाव उभर आया। उन्होंने अपने चरण आगे बढ़ाये....चित्रलेखा मार्ग को रोककर नीचे पसर गई। वह बोली- 'महाराज! मेरी बहन कोशा आपके बिना मृत्यु...' 'बहन ! इस भवन की स्वामिनी को मेरा धर्मलाभ कहना।' चित्रलेखा को मार्ग छोड़ना पड़ा। परन्तु स्थूलभद्र के दो कदम आगे बढ़ते ही चित्रा ने पल्ला पसारकर भीख मांगते हुए कहा-'कृपालु ! दया करें-इस प्रकार त्याग न करें।' शान्त और स्थिर चित्त से स्थूलभद्र ने कहा- 'मां! धर्म में स्थिर रहने की शक्ति प्राप्त करना और भवन की स्वामिनी को कहना कि वह धर्म में स्थिर बने।' और आर्य स्थूलभद्र चले गए। चित्रलेखा, चित्रा आदि सभी रोते-रोते उनके साथ चले। एक ओर आम्रवाटिका की धरती पर भारतवर्ष की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी और मगध की राजनर्तकी रूपकोशा मूर्च्छित अवस्था में पड़ी थी। एक ओर कुछ ही दूरी पर कोशा के प्राणों को विवश बनाने वाली महार्घवीणा टूटी-फूटी अवस्था में पड़ी थी। उसका एक-एक तार टूट चुका था। मंद समीर का आघात पाकर वे सारे टूटे तार स्थूलभद्र के वैराग्य का संगीत गा रहे थे और कोशा के वियोग की व्यथा प्रकट कर रहे थे। आर्य स्थूलभद्र और कोशा २२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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