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________________ 'उनकी पुत्री।' माधवी ने कहा। नवयौवना बोली, 'वीणा पर नाचने वाली अंगुलियां किसी कन्या की नहीं हो सकतीं।' चित्रा पर दृष्टि टिकाते हुए नवयौवना ने पूछा, 'चित्रा! तू बता।' 'आपका अनुमान सही है। महामंत्री के ज्येष्ठ पुत्र आर्य स्थूलभद्र पाटलीपुत्र के युवकों में अजोड़ वीणावादक के रूप में प्रख्यात हैं। संभव है, वे ही वीणा बजा रहे हों।' नवयौवना ने आंखें मूंदी। उसकी सारी चेतना वीणा के स्वरों पर केन्द्रित हो गई। बदली के पीछे छिपा हुआ चन्द्रमा साहस कर बाहर आया और अपनी मृदु किरणों से चन्द्रानना पर आघात करने लगा। रूप को बिखेरती हुई वह नवयौवना ध्यानमग्न होकर उन वीणा-स्वरों को पी रही थीउसका मन वीणा-वादक की थिरकती हुई अंगुलियों का स्पर्श करने लगा और उसके प्राण मस्ती में समाधिस्थ हो गए। जिसके भाग्य में निराशा का धब्बा लगा हुआ है, वह बेचारा चन्द्रमा आकुल-व्याकुल हो गया। चन्द्र की निर्लज्जता पर हंसने वाली एक बदली आयी और चन्द्र को आवृत कर गई। प्रथम यौवन के सुकोमल चपेटों से आहत उस नवयौवना के अर्धनिमीलित मदभरे नयन खुले। वह तत्काल उठ बैठी। उसने आकुलस्वर में कहा, 'चित्रा ! यौवन का यह प्रौढ़ गीत वीणा की निर्जीव देह पर सजीव हुआ है। अरे, चन्द्रमा तो आकाश के मध्य में आ चुका है। वत्सक को कह, माँ चिन्ता कर रही होगी। माधवी! मेरा उपवस्त्र कहां है?' यह कहकर नवयौवना ने माधवी की ओर देखा। उसके नयन बिजली की भांति चमक रहे थे। उसके गुलाबी गौर शरीर पर वज्रमुक्ता से अंकित अभिनव अलंकार अपनी किरणों से युवती के रूप को बढ़ा रहे थे। किन्तु उसके नयन-पल्लवों में प्रतिबिम्बित चमक का रहस्य क्या था? ऊर्मी या आनन्द ? सन्तोष या तृषा ? आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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