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________________ सोलहवां बोल कारण देवर्षि कहलाते हैं। आपस में छोटे-बड़े न होने के कारण सभी स्वतंत्र हैं। ये तीर्थंकर के गृह त्याग के समय उनके सामने उपस्थित होकर 'बुज्झह- बुज्झह' शब्द द्वारा प्रतिबोध करने के अपने आचार का पालन करते हैं। कल्पोपपन्न देवों की जितनी भी जातियां हैं, उन सब में स्वामी - सेवक, छोटे-बड़े का भेद होता है । 9. इंद्र - सामानिक आदि सब प्रकार के देवों के स्वामी । २. सामानिक-ये आयु आदि में इंद्र के समान होते हैं। ये भी पूज्य परन्तु इनमें इन्द्रत्व नहीं होता । ३. त्रास्त्रिश - ये मंत्री या पुरोहित का काम करते हैं। ४. पारिस - ये मित्र का काम करते हैं । (सदस्य ) ५. आत्म-रक्षक - ये शस्त्र धारण किये हुये आत्म-रक्षक का काम करते होते है हैं । ६. लोकपाल- ये सीमा की रक्षा करते हैं। ७. अनीक ये सैनिक या सेनापति का काम करते हैं। १०३ ८. प्रकीर्णक-ये नगरवासी या देशवासी के समान हैं। ६. आभियोग्य - ये दास, सेवक या नौकर के बराबर होते हैं। १०. किल्विषिक- ये अंत्यज के समान होते हैं। कल्पोपपन्न देवों में दस प्रकार के भेद पाये जाते हैं परन्तु व्यन्तर और ज्योतिष्कों में सिर्फ आठ प्रकार के भेद पाये जाते हैं, त्रायस्त्रिश और लोकपाल उनमें नही होते । कल्पातीत-नव ग्रैवेयक और पांच अनुत्तर विमान में पैदा होने वाले देव कल्पातीत कहलाते हैं। बारह स्वर्गों के ऊपर नौ ग्रैवेयक देवों के विमान हैं। लोक पुरुष के आकार जैसा है। ये नौ विमान इस पुरुष के ग्रीवा - गले के भाग में होने के कारण ग्रैवेयक कहलाते हैं। इन नौ विमानों के ऊपर पांच विमान और हैं : १. विजय २. वैजयंत ३. जयंत ४. अपराजित ५. सर्वार्थसिद्ध । ये विमान सबसे उत्तर-प्रधान होने के कारण अनुत्तर कहलाते हैं। नीचे-नीचे के देवों से ऊपर-ऊपर के देव इन सात बातों में अधिक होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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