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________________ सोलहवां बोल दंडक चौबीस सात नारक का-दंडक एक पहला भवनपति देवों के दण्डक दस २. असुरकुकार का दंडक दूसरा ७. द्वीपकुमार का दंडक सातवां ३. नागकुमार का दंडक तीसरा ८. उदधिकुमार का दंडक आठवां ४. सुपर्णकुमार का दंडक चौथा ६. दिक्कुमार का दंडक नौवां ५. विद्युत्कुमार का दंडक पांचवां १०. वायुकुमार का दंडक दसवां ६. अग्निकुमार का दंडक छठा ११. स्तनितकुमार का दंडक ग्यारहवां तिर्यञ्च जीवों के दण्डक नौ (१२-२०) १२. पृथ्वीकाय का दण्डक बारहवां १७. द्वीन्द्रिय का दण्डक सतरहवां १३. अप्काय का दण्डक तेरहवां १८. त्रीन्द्रिय का दण्डक अठारहवां १४. तेजस्काय का दण्डक चौहदवां १६. चतुरिन्द्रिय का दण्डक उन्नीसवां १५. वायुकाय का दण्डक पन्द्रहवां. २०. तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय का दण्डक १६. वनस्पतिकाय का दण्डक सोलहवां बीसवां शेष दण्डक चार (२१-२४) २१. मनुष्य पंञ्चेन्द्रिय का दण्डक इक्कीसवां २२. व्यन्तर देवों का दण्डक बाईसवां २३. ज्योतिष्क देवों का दण्डक तेईसवां २४. वैमानिक देवों का दण्डक चौबीसवां जहां प्राणी अपने कृत-कर्मों का फल, जो एक प्रकार का दण्ड है, भोगते हैं, उन स्थानों, अवस्थाओं को दण्डक कहते हैं। जीव अपने कर्मानुसार चार गतियों में चक्कर लगाता रहता है। चारों गतियों को कुछ और विस्तृत करने से उनके २४ विभाग होते हैं, जो दण्डक कहलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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