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________________ ६८ : भिक्षु विचार दर्शन आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन को भगवान की इस वाणी का सफल अनुवाद बना डाला। ८. आग्रह से दूर ___ आचार्य भिक्षु में अपने सिद्धान्त के प्रति जितना आग्रह था, उतना ही दुराग्रह से दूर रहने का तीव्र प्रयल। उन्होंने यही सीख दी-खींचातानी से बचो, कोई तत्त्व समझ में न आए तो दुराग्रह मत करो, बहुश्रुत व्यक्तियों से समझो, फिर भी समझ में न आए तो उसे ज्ञानीगम्य कहकर छोड़ दो। चिन्तन भले करो, पर दुराग्रह से बचते रहो। उन्होंने यह सीख ही नहीं दी, उनके चरण भी इसी पथ पर आगे बढ़े। उन्होंने एक दिन कहा-दस प्रकार का श्रमण-धर्म है, तब पास बैठा भाई बोल उठा-नहीं, दस प्रकार का यति-धर्म है। आपने कहा-भले दस प्रकार का महात्मा-धर्म कहो, मुझे क्या आपत्ति है। शब्दों के जाल में फंसने वाला तत्त्व तक नहीं पहुंच पाता। उन्होंने कहा-दया दया सब लोग पुकारते हैं और यह सच है कि दया धर्म है, पर मुक्ति उन्हें ही मिलेगी जो दया को पहचानकर उसका पालन करेंगे। वे शाब्दिक उलझन में पड़ने वालों को सदा सावधान करते रहे। उनकी बोधवाणी है कि गाय, भैंस, आक और थूहर-इन चारों के दूध होता है। शब्द को पकड़ने वाला गाय के दूध की जगह आक का दूध पी ले तो परिणाम क्या होगा? हमें तत्त्व तक पहुंचना चाहिए, भले फिर उसका माध्यम कोई शब्द बने। १. मर्यादा-मुक्तावली २. भिक्खु-दृष्टान्त, २१३, पृ. ८६ ३. अणुकम्पा : ८, दू. १ ४. वहीं, १ दू. १-४ अणुकम्पा में आदरे, कीजो घणा जतन। जिणवर ना धर्म माहिली, समकत पाय रतन।। गाय भैंस आक थोर नों, ए च्यारु ई दूध । तिम अणुकंपा जाणजो, राखे मन में सूध।। आक दूध पीधां थकां, जुदा करे जीव काय। ज्यूं सावध अणुकंपा कीयां, पाप कर्म बंधाय।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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