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________________ २२ : भिक्षु विचार दर्शन ___ प्रधान सुख उससे होता है, जो निःसावध धर्म है।" कुछ व्यक्ति कहते हैं-आचार्य भिक्षु ने धर्म को लौकिक और लोकोत्तर के भेदों में विभक्त कर जीवन के टुकड़े कर डाले। इस आरोप को हम अस्वीकार नहीं करते और साथ-साथ हम यह भी स्वीकार किए बिना नहीं रह सकते कि जीवन को टुकड़ों में बांटे बिना कोई रह भी नहीं सकता। भगवान् महावीर ने निक्षेप व्यवस्था में धर्म को लौकिक-लोकोत्तर भागों में विभक्त किया है। महात्मा बुद्ध ने कहा"भिक्षुओ, ये दो दान हैं।" "कौन से दो? "भौतिक-दान तथा धर्म-दान। भिक्षुओ, इन दोनों में धर्म-दान श्रेष्ठ है।" "भिक्षुओ, ये दो संविभाग (वितरण) हैं।" "कौन से दो?" "भौतिक-संविभाग तथा धार्मिक, संविभाग। भिक्षुओ, ये दो संविभाग हैं। भिक्षुओ, इन दोनों संविभागों में धार्मिक-संविभाग श्रेष्ठ है।" "भिक्षुओ, ये दो सुख हैं।" "कौन से दो?? “लौकिक-सुख और लोकोत्तर-सुख । भिक्षुओ, ये दो सुख हैं। भिक्षुओ, इन दोनों सुखों में लोकोत्तर-सुख श्रेष्ठ है।” "भिक्षुओ, ये दो सुख हैं।" “कौन से दो?' “साश्रव-सुख तथा अनाश्रव-सुख। भिक्षुओ, ये दो सुख हैं। भिक्षुओ, इन दोनों सुखों में अनाश्रव-सुख श्रेष्ठ है।" १. उत्तरपुराण पर्व ५.११०-११ : न तावदर्थकामाभ्यां सुखं संसारवर्धनात्। नामुष्मादपि मे धर्माद् यस्मात् सावधसम्भवः। निःसावधोस्तिधर्मोऽन्यस्ततः सुखमनुत्तमम् । इत्युदर्कोवितर्कोऽस्य विरक्तस्याभवत्ततः।। २. अंगुत्तर निकाय, प्रथम भाग, पृ. ६४ ३. वही, पृ. ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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