SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० : भिक्षु विचार दर्शन हम कर चुके हैं। अब उन्मुक्त धारा में भी कुछ डुबकियां लगा लें। - एक खरगोश के पीछे दो बाघ दौड़े। वह भागकर एक खोह में घुस गया। वहां एक लोमड़ी बैठी थी। उसने पूछा-तू प्राणों को हथेली पर लिए कैसे दौड़ आया? 'बहन! जंगल के सभी जानवर मिलकर मुझे चौधरी बनाना चाहते थे। मैं इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता था। इसलिए बड़ी कठिनाई से उनके चुंगल से निकल आया हूं।'-खरगोश ने अपनी भयपूर्ण भावना को छिपाते हुए कहा। लोमड़ी-भैया! चौधराई में तो बड़ा स्वाद है। खरगोश-बहन! यह पद तुम ले लो, मुझे तो नहीं चाहिए। लोमड़ी का मन ललचाया और वह चौधराई का पद लेने खोह के बाहर निकली। वहां बाघ खड़े ही थे। उन्होंने उसके दोनों कान पकड़ लिए। वह कानों को गंवाकर तुरंत लौट आई। खरगोश-अभी वापस क्यों चली आयी? लोमड़ी-चौधराई में खींचतान बहुत है। यह सच है, चौधराई में खींचतान बहुत है। पर उसकी भूख किसको नहीं है? जनतन्त्र के युग में वह और अधिक उभर जाती है। किन्तु लोग इससे बोधपाठ लें। अपनी योग्यता को विकसित किये बिना चौधरी बनने का यत्न न करें। १४. तांचे पर चांदी का झोल एक साहूकार की दुकान में एक आदमी आया। उसने एक पैसे का गुड़ लेना चाहा। सेठ ने पैसा ले उसे गुड़ दे दिया। उसने सोचा-प्रारम्भ अच्छा हुआ है, पहले-पहल तांबे का पैसा मिला। - दूसरे दिन वह एक चांदी के रुपये को भुनाने को आया। साहूकार ने वह ले लिया और उसको रेजगारी दे दी। साहूकार ने आरंभ को शुभ माना। तीसरे दिन वह खोटा रुपया भुनाने को आया। साहूकार ने उसे लेकर देखा तो वह खोटा रुपया था-नीचे तांबा और ऊपर चांदी का झोल था। साहूकार ने रुपये को नीचे डालते हुए कहा-आज तो बहुत बुरा हुआ। १. भिक्खु दृष्टान्त, २६८, पृ. ११८-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy