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________________ अनुभूतियों के महान् स्रोत : १६७ जो कुत्ते की भांति पूंछ हिलाता है, और उलाहना मिलने पर जो संघ से अलग हो जाता है। सोरा स्वयं जलता है, दूसरे को जलाता है फिर राख होकर उड़ जाता है। वैसे ही अविनीत व्यक्ति अपने और दूसरों के गुणों को राख कर डालता है। क्षण-क्षण में रुष्ट-तुष्ट होने का मनोभाव अच्छा नहीं है। उससे व्यक्ति को असंतोषपूर्ण जीवन बिताना पड़ता है, पर स्वभाव का परिवर्तन भी कोई सहज सरल नहीं है। __किसी के हृदय को बदलने का साधन है समझाना-बुझाना। किन्तु किसी का समझना समझाने वाले पर निर्भर नहीं है। समझाने और समझने वाले दोनों योग्य हों, तभी वह कार्य पूर्ण होता है, अन्यथा नहीं। इस तथ्य को प्याज के उदाहरण से समझाया है प्याज को सौ बार जल से धोया पर उसकी गंध नहीं गई। अविनीत को बार-बार उपदेश दिया पर उसका हृदय नहीं बदला। प्याज की गंध धोने पर . कुछ मंद पड़ जाती है, परन्तु अविनीत को उपदेश देने का फल नहीं होता। १. विनीत-अविनीत, २.३१-३३ सोर ठंडो लागे मुख में घालियां, अग्नि माहें घाल्या हवे तातो रे। ज्यूं अविनीत ने सोर री ओपमा, सोर ज्यूं अलगो पडे जातो रे॥ आहार पाणी वस्त्रादिक आपियां, तो उ श्वास ज्यूं पूछ हलावे रे । करडो कलां उठे सोर अग्नि जयं, गण छोड़ी एकल उठ जावे रे। सोर आप बले बाले ओर न, पले राख थई उड जावे रे। ज्यूं अविनीत आप ने तरतणा, ग्यानादिक गुण गमावे रे॥ २. वही, ३.२६-३० कांदा ने सो वार पाणी तूं धोवियां, तो ही न मिटे तिणरी वास हो। ज्यूं अविनीत ने गुर उपदेश दीये घणो, पिण मूल न लागे पास हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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