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________________ १७४ : भिक्षु विचार दर्शन अवसर मिलता है। कुछ व्यक्ति निसर्ग से ही अयोग्य होते हैं और कुछेक अपने आप पर नियंत्रण न रखने के कारण अयोग्य बन जाते हैं। आचार्य भिक्षु ने उन कारणों का उल्लेख किया है जिनसे अयोग्यता आती है और बढ़ती है। उनकी वाणी है-“शिष्यो! कपड़े और सुख-सुविधा मिले, वैसे गांवों की ममता कर बहुत जीव चरित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं।" कुछ कारण ऐसे होते हैं कि किसी साधु को गण से पृथक् करना पड़ता है और कुछ प्रसंगों में साधु स्वयं गण से पृथक् हो जाते हैं। अकल्पनीय कार्य करने वाले साधु को गण से पृथक् करने की विधि बहुत ही प्राचीन है। दीक्षित करने का अधिकार जैसे मूलतः आचार्य के हाथों में है, वैसे ही किसी को गण से पृथक् करने का अधिकार भी आचार्य के हाथों में है। परम्परा यह हो गई कि पहले कोई व्यक्ति योग्य जान पड़ता तो साधु उसे दीक्षित कर लेते, पर अब ऐसा नहीं होता। गण से पृथक् करने अधिकार इससे अधिक व्यापक है। कोई साधु गण की मर्यादा के प्रतिकूल चले तो उसे गण से पृथक् करने का अधिकार सबको है। ऐसे भी प्रसंग आए हैं कि गृहस्थों ने भी साधुओं को पृथक् कर दिया। परन्तु इस कार्य में विवेक की बहुत आवश्यकता है। अधिकार होने पर भी उपयोग वही करता है और उसे करना भी चाहिए कि जो परिस्थिति का सही-सही अंकन कर सके। कोई व्यक्ति जैन-मुनि बनता है, यह बहुत बड़ी बात है। मुनि कुछेक वर्षों के लिए नहीं बनता, उसे जीवन भर मुनि-धर्म का पालन करना होता है। गृहस्थ-जीवन से उसके सारे सम्बन्ध छूट जाते हैं। उसके पास भावी जीवन की कोई निधि नहीं होती। वह निरालम्ब मार्ग में ही चलता है। वैसी स्थिति में पूर्ण चिन्तन किए बिना किसी को गण से पृथक् कर देना न्याय नहीं होता। इसलिए सामान्य स्थिति में इस विषय में अधिकार का उपयोग करने से पूर्व आचार्य की सहमति प्राप्त करना अपेक्षित-सा लगता है। गण से स्वयं पृथक् होने के अनेक कारण हैं। कुछ कारणों का उल्लेख आचार्य भिक्षु ने किया है। जैसे १. कोई साधुपन का पालन न कर सके। २. किसी भी साधु से स्वभाव न मिले। - १. लिखित, १८३२ २. स्थानांग, ३१७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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