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________________ १४२ : भिक्षु विचार दर्शन जीव-रक्षा को प्रधान मानने वाले इन कठिनाइयों का पार नहीं पा सकते, तब बड़ों के लिए छोटे और बहुतों के लिए थोड़े जीवों की हिंसा को निर्दोष मान लेते हैं। किन्तु इस मान्यता से अहिंसा का सिद्धान्त टूट जाता है। महात्मा गांधी ने भी ऐसे प्रसंग की चर्चा में बताया है- “एक भाई पूछे छे-नाना जन्तुओं एक बीजा नो आहार करतां अनेक बार जोइए छीए। मारे त्यां एक घरोली ने एवां शिकार करता रोज जोऊं डूं, अने बिलाड़ी ने पक्षीओ नो। शुं ए मारे जोया करवो? अने अटकावतां बीजानी हिंसा करवी? आवी हिंसा अनेक थयाज करे छे, आमां आपणे शुं करवू? में आवी हिंसा नयी जोइ शृं? घणीए बार घरोली ने वादानो शिकार करती अने वांदा ने बीजा जन्तुओं ना शिकार करता में जोया छे। पण ऐ 'जीवो जीवस्य जीवनम्' नो प्राणी जगत् नो कायदो अटकाववायूँ मने कदी कर्त्तव्य नथी जणायुं। ईश्वरनी ए अगम्य गूंज उकेलवानो हूं दावो नथी करतो।" __ अहिंसक सब जीवों के प्रति संयम करता है, इसलिए वह सब जीवों की रक्षा करता है। सामाजिक प्राणी समाज की उपयोगिता को ध्यान में खात भीनी उकरडी तटा घणी, गोंडोला गधईया जाण हो। टलबल टलबल कर रह्या, याने कर्मा नाख्या छे आण हो। कायेक जायगां में उंदर घणां, फिरे आमा साहमा अथाग हो। थोडो सो खडको सांभले, तो जाओ दिशोदिश भाग हो॥ गुड़ खांड आदि मिसटान में, जीव चिहूं दिस दोड्या जाय हो। माख्यां ने मांका फिर रह्या, ते तो हुचके माहोमा आय हो॥ नाड़ो देखी में आवे भैंसीयां, धान ढूके बकरा आय हो। गाडे आवे बलद पाधरा, माटो आय उभी छे गाय हो। पंखी चूगे उकरली उपरे, उंदर पासे मिनकी जाय हो। माखी ने माका पकड़ ले साधु किणने बचावे छोडाय हो। भेस्यां हाकाल्यां नाडा माहिला, सगला रे साता थाय हो। बकरां ने अलगा कीयां, इंडादिक जीव ते बच जाय हो॥ थोड़ा सा बलदां ने हाकल्या, तो न मरे अनंत काय हो। पाणी फूहारादिक किण विध मरे, नेडी आवण न दे गाय हो। लट गींडोलादिक कुसले रहे, जो पंखी ने दीये उडाय हो। मिनकी छछकार नसार दे, तो उंदर घर सोग न थाय हो। मांका ने आघो पाछो करे, तो माखी उड नाठी जाय हो। साधां रे सगला सारिखा, ते तो विचे न पड़े जाय हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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