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________________ १३८ : भिक्षु विचार दर्शन प्रभाव है कि हम लोग सदा के लिए इस बुराई से बच गए और इसके साथ-साथ आपका यह धन भी बच गया। सेठ बड़ा प्रसन्न हुआ। अपना धन सम्भाल मुनि को धन्यवाद देता हुआ अपने घर चला गया। यह पहला, चोर का दृष्टान्त है। इसमें दो बातें हुई-एक तो साधुओं का उपदेश सुन चोरों ने चोरी छोड़ी, इसमें चोरों की आत्मा चोरी के पाप से बची और दूसरी-उसके साथ सेठजी का धन भी बचा। अब सोचना यह है कि अहिंसा क्या है? चोरों की आत्मा चोरी के पाप से बची वह है या सेठजी का धन बचा वह? २. कसाई बकरों को आगे लिए जा रहे थे। उन्हें मार्ग में साधु मिले। उनमें से प्रथम साधु ने कसाइयों को सम्बोधित करते हुए कहा-भाई! इन बकरों को भी मौत से प्यार नहीं, यह तुम जानते हो? इनको भी कष्ट होता है, पीड़ा होती है, तुम्हें मालूम है? खैर! इसे जाने दो। इनको मारने से तुम्हारी आत्मा मलिन होगी, उसका परिणाम दूसरा कौन भोगेगा? मुनि का उपदेश सुन कसाइयों का हृदय बदल गया। उन्होंने उसी समय बकरों को मारने का त्याग कर दिया और आजीवन निरपराध-त्रस जीवों की हिंसा का भी प्रत्याख्यान किया। कसाई अहिंसक-स्थूल हिंसा-त्यागी बन गए। यह दूसरा कसाइयों का दृष्टान्त है। इसमें भी साधु के उपदेश से दो बातें हुई-एक तो कसाई हिंसा से बचे। दूसरी-उनके साथ-साथ बकरे मौत से बचे। अब सोचना यह है कि अहिंसा क्या है? कसाई हिंसा से बचे वह है या बकरे बचे वह? चोर चोरी के पाप से बचे और कसाई हिंसा से, यहां उनकी आत्मशुद्धि हुई। इसलिए यह निःसन्देह अहिंसा. है। चोरी और जीव-वध के त्याग से अहिंसा हुई, किन्तु इन दोनों के साथ-साथ दो कार्य और हुए। धन और बकरे बचे। यदि इन्हें भी अहिंसा से जोड़ दिया जाए तो तीसरे दृष्टान्त पर ध्यान देना होगा। ३. अर्द्ध रात्रि का समय था। बाजार के बीच एक दुकान में तीन साधु स्वाध्याय कर रहे थे। संयोगवश तीन व्यक्ति उस समय उधर से ही निकले। साधुओं ने उन्हें देखा और पूछा-भाई! तुम कौन हो? इस घोर बेला में कहां जा रहे हो? यह प्रश्न उनके लिए एक भय था। वे मन ही मन सकचाए और उन्होंने देखने का यत्न किया कि प्रश्नकर्ता कौन है। देखा तब पता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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