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________________ १२६ : भिक्षु विचार दर्शन "अहिंसा की दष्टि से शस्त्र धारण करने वालों में और निःशस्त्र रहकर घायलों की सेवा करने वालों में कोई फर्क नहीं देखता हूं। दोनों ही लड़ाई में शामिल होते हैं और उसी का काम करते हैं, दोनों ही लड़ाई के दोष के दोषी हैं।" गांधीजी ने युद्ध के सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त किए, वे ही विचार आचार्य भिक्षु ने जीवन-युद्ध के बारे में व्यक्त किए। सामाजिक क्रांति की दृष्टि से जहां मनुष्यों को दूसरे मनुष्यों को मारने की खुली छूट होती है, वह युद्ध है। मोक्ष की दृष्टि से जहां एक जीव में दूसरे जीव को मारने की भावना या वृत्ति होती है, वह युद्ध है। अर्थात् जीवन ही युद्ध है। युद्ध में लगे जीवों की सहयात करने वाला युद्ध के दोषों से मुक्त नहीं रह सकता-यह महात्मा गांधी की वाणी है। आचार्य भिक्षु की वाणी है- असंयममय जीवन-युद्ध में संलग्न जीवों की सहायता करने वाला असंयममय जीवन-युद्ध के दोषों से मुक्त नहीं रह सकता। पहली बात सूक्ष्म है और दूसरी सूक्ष्मतर। इसलिए इन पर सहसा विश्वास नहीं होता, पर इनकी सचाई में संदेह नहीं किया जा सकता। आचार्य भिक्षु ने कहा-कोई व्यापारी घी और तम्बाकू दोनों का व्यापार करता था। एक दिन वह किसी कार्यवश दूसरे गांव गया। उसका पुत्र दुकान में बैठा। उसने देखा कि एक बर्तन में घी पड़ा है और दूसरे में तम्बाकू। दोनों आधे-आधे थे। उसने सोचा-पिताजी कितने कम समझदार हैं, बिना मतलब दो पात्र रोक रखे हैं। उसने घी का पात्र उठाया और तम्बाकू में उड़ेल दिया। उन्हें मिलाकर राब-सी बना ली। ग्राहक आया तम्बाक लेने। उसने वह राब दी। ग्राहक बिना लिए लौट गया। दूसरा ग्राहक आया घी लेने। वही राब उसके सामने आयी। वह भी खाली लौट गया। जितने भी ग्राहक आए, वे सारे के सारे रीते हाथ लौट गए। वह पात्र खाली न हो तब तक दूसरा पात्र निकालने की पिताजी मनाही कर गए थे, उसे समूचे दिन इस समस्या का सामना करना पड़ा। १. हिन्दी नवजीवन, २० सितम्बर, १६२८ २. व्रताव्रत, ४.१ : जिम कोइ प्रत तंबाकू विणजे पिण वासण विगत न पाडे रे। व्रत लेइ तंबाखू में घाले, ते दोई वसत विगाडे रे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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