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________________ ११६ : भिक्षु विचार दर्शन लोकोत्तर दया है। अग्नि में जलते हुए को किसी ने बचाया, कुएं में गिरते हुए को किसी ने उबारा-वह लौकिक उपकार है। ___जन्म-मृत्यु की अग्नि में झूलसते हुए को संयमी बना किसी ने बचाया, पाप के कुएं में गिरते हुए को उपदेश देकर किसी ने उबारा-यह लोकोत्तर उपकार है। किसी दरिद्र को धन-धान्य से संपन्न कर सुखी बना देना लौकिक उपकार है। एक आदमी तृष्णा की आग में झुलस रहा है, उसे उपदेश देकर शांत बना देना लोकोत्तर उपकार है। एक आदमी अपने माता-पिता की दिन-रात सेवा करता है, उन्हें मनचाहा भोजन कराता है, यह लौकिक उपकार है। एक आदमी अपने माता-पिता को ज्ञान, श्रद्धा और चारित्र की प्राप्ति हो वैसा यत्न करता है, उन्हें धार्मिक सहयोग देता है, यह लोकोत्तर उपकार है। कहा जाता है-लौकिक और आध्यात्मिक का भेद डालकर जीवन को विभक्त करना अच्छा नहीं है। इससे लौकिक कर्तव्य और धर्म के बीच खाई हो जाती है। आचार्य भिक्षु-का दृष्टिकोण था कि इनके बीच खाई है। कुछ १. अणुकम्पा, ८.२ : कोई द्रवे लाय सूं बलतो राखे, द्रवे कूवो पड़ता ने झाल बचाओ। ओ तो उपगार कीयो इण भव रो, जे विवेक विकल त्यांने खबर न कांयो। २. वही, ८.३: घट में ग्यान घाल ने पाप पचखावे, तिण पड़तो राख्यो भव कूआ मांझो। भावे लाय सूं बलता ने काढ़े रिषेश्वर, ते पिण गेहलां भेद न पायो॥ ३. वही, ११.४ : ४. वही, ११.१५ : किणरे तिसणा लाय लागी घर भीतर, ग्यानादिक गुण बले तिण माय। उपदेश देइ तिणरो लाय बुझावे, रूम रूम में साता दीधी वपराध। ५. वही, ११.१८ : मात पितारी सेवा करे दिन रात, वले मन मान्या भोजन त्यांने खवावे। वले कावड कांधे लीयां फिर त्यांरी, वले बेहूं टंका रो सिनान करावे॥ ६. वही, ११.१६ : कोइ मात पिता ने रूडी रीते, भिन भिन कर ने धर्म सुणावे। ग्यान दरसन चारित त्यांने पभावे, काम भोग शब्दादिक सर्व छोड़ावे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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