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________________ ६८ : भिक्षु विचार दर्शन नहीं हो सकते।' धर्म और अधर्म दो ही मार्ग हैं। तीसरा कोई मार्ग नहीं । दो ज्ञान एक साथ नहीं हो सकते। एक व्यक्ति नदी के जल में खड़ा है । सिर पर धूप है। पैरों को ठंडक लग रही है और सिर को गर्मी । धूप और जल का संयोग सतत है । पर सर्दी और गर्मी की अनुभूति सतत नहीं होती । जिस समय गर्मी की अनुभूति होती है, उस समय सर्दी की नहीं होती और जिस समय सर्दी की होती हैं, उस समय गर्मी की नहीं होती । योग्यता की दृष्टि से मनुष्य पांच इन्द्रिय वाला होता है। एक काल में वह एक ही इन्द्रिय से जानता है। जब एक आदमी सूखा लड्डू खाता है, तब उसे शब्द भी सुनाई देता है, उसे देखता भी है, उसकी गन्ध भी आती है, रस भी चखता है । लगता है पांचों की जानकारी या अनुभूति एक साथ हो रही है । परन्तु ऐसा होता नहीं । इन सबका काल भिन्न होता है । दो ज्ञान एक साथ नहीं हो सकते। दो क्रियाएं एक साथ हो सकती हैं, किन्तु अविरोधी हों तो । दो विराधी क्रियाएं एक साथ नहीं हो सकतीं। दो प्रकार के विचार एक साथ नहीं हो सकते । सम्यक् और असम्यक् दोनों क्रियाएं एक साथ नहीं हो सकतीं । अहिंसा और हिंसा, धर्म और अधर्म का आचरण एक साथ नहीं किया जा सकता । सांसारिक उपकार सांसारिक व्यवस्था का मार्ग है। आत्मिक उपकार मोक्ष की साधना का मार्ग है। मिथ्यादृष्टि इन दोनों को एक मानता है, सम्यग्दृष्टि इनको अलग-अलग मानता है । ३ ३. धर्म की अविभक्तता ४ अमृत सबके लिए समान है। झूठी खींचतान मत करो। १. निन्हव चौपाई : ३, दू. ३ : २. श्रद्धा री चौपाई : १.१०५ : धर्म अधर्म मारग दोय रे, पिण तीजो पंथ न कोय रे ! ती मिश्र मिथ्याती झूटो कहे रे, आप डूबे ओरां ने डबोय रे ॥ ३. अणुकम्पा : ११.५२ : संसार ने मोख तणा उपगार, समदिष्टी हुवे ते न्यारा-न्यारम् जाणे । पिण मिथ्याती ने खबर पडे नहीं सुधी, तिण सूं मोह कर्म वस उधी ताणे ॥ ४. वही, २ दू. ३ : साध श्रावक दोनूं तणी, एक अणुकम्पा जाण । इमरत सहु ने सारिषो, कूडी मत करो ताण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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