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________________ कैसे सोचें ? भी नहीं है। कोरी मथनी चल रही है और कोरी हांडी पड़ी है या पानी से भरी हुई हांडी पड़ी है । तत्त्वचर्चा के साथ-साथ प्रयोग होना चाहिए, अभ्यास होना चाहिए। कोरा सिद्धांत नहीं, उसका व्यवहार होना चाहिए । ३० I शिक्षा के दो रूप सदा से रहे हैं। मैं यह बात केवल आज के आधार पर नहीं कह रहा हूं, अनुभव के आधार पर कह रहा हूं । प्राचीन पद्धति के आधार पर भी कह रहा हूं । प्राचीनकाल में शिक्षा के दो रूप माने गये थे - एक ग्रहण शिक्षा और दूसरी आसेवन शिक्षा । जानो और उसका आसेवन करो । अभ्यास करो । तब तो पूरी बात समझ में आएगी । बहुत लोग आते हैं, जल्दी में आते हैं और कहते हैं कि महाराज ! मुझे अभी-अभी जाना है, केवल दो चार मिनिट का समय है । मेरा मन बहुत चंचल है, विक्षिप्त है, बड़ा परेशान हूं, बड़ी कठिनाइयां हैं। ऐसा कोई समाधान दें कि मन की स्थिति ठीक बन जाए, मन की परेशानी मिट जाए। मैं कहता हूं कि तुम भी भले आदमी हो, बड़े विचित्र आदमी हो ! इतनी बड़ी तो मन की समस्या और परेशानी और फिर दो मिनट में समाधान चाहते हो ? हमारे पास कोई जादू का डंडा नहीं है। मैं शक्तिपात में विश्वास नहीं करता । जादू के डंडा और चमत्कार में विश्वास नहीं करता । मैं आशीर्वाद देने में भी विश्वास नहीं करता। मैं तो विश्वास करता हूं कि सामने वाले व्यक्ति का विश्वास जागे । पुरुषार्थ जागे । स्वयं सत्य खोजे । हमारे प्रेक्षाध्यान का सूत्र है - स्वयं सत्य खोजो । हर व्यक्ति अपना सत्य खोजे। दूसरे पर भरोसा न करे। दूसरे पर भरोसा करना भी बहुत खतरनाक होता है । भरोसा करना पड़ता है । वह भी एक सीमा तक । सीमा से बाहर भरोसा करना खतरनाक होता है । गुरु पर भी जितना भरोसा करना चाहिए उतना ही करना चाहिए। ऐसा न सोचें कि गुरु सब कुछ कर देगा । ऐसा सोचेंगे तो धोखा हो जाएगा। कुछेक गुरु अपने शिष्यों को बड़ा प्रलोभन देते हैं, बड़े मीठे आश्वासन देते हैं कि चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा पर सब धोखा निकलता है । जब स्थिति सामने आती है तब कहता है गुरुजी ! आपने इतना कहा था, हुआ तो नहीं ? अरे, गुरु का इतना कहना माना ही क्यों ? तुम मान बैठते हो कि सब कुछ हो जाएगा और जब मान बैठते हो तो फिर शिकायतें, फिर गुरु का अपवाद ! चाहे धर्म हो, चाहे भगवान् हो, चाहे गुरु हो, चाहे आत्मा हो, चाहे कोई हो, प्रत्येक के साथ विश्वास करने की एक निश्चित सीमा होती है। सीमा तक तो करना ही पड़ेगा। बिना सीमा काम नहीं चलेगा। सीमातीत कोई भी बात करते हैं वहां कठिनाई पैदा होती है । हम इस बात में विश्वास करते हैं, प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में यह बात चलती है कि हम सत्य खोजें, अपना सत्य स्वयं खोजें । अपने आप अपने रास्ते को तय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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