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________________ २२६ कैसे सोचें ? बना का बना रहता है। यह नहीं मान लिया जाता कि अंधेरा है तो रात हो गई है। दिन और रात के बीच की जो एक विभाजक रेखा है वह है हमारे अस्तित्व का परिणमन । अस्तित्व का परिणमन कभी विस्मृति नहीं होने देता स्वयं के अस्तित्व की। "मैं चेतन हूं", “मैं अचेतन नहीं हूं"-यह स्मृति सदा बनी रहती है। इस परिणमन के साथ-साथ कर्म का विपाक भी चलता है और परिस्थिति भी चलती है। इन तीनों का प्रतिफलन होता है-हमारा व्यक्तित्व । भय का चौथा बड़ा स्रोत है-आन्तरिक कारण। भय के चार स्रोत हैं। उनसे फलित होता है-परिस्थितिवाद, कर्मवाद और परिणमनवाद। ___ आदमी अधिक समय परिस्थितियों के साथ जीता है, उद्दीपनों के साथ जीता है। परिस्थितियां आदमी को बहुत बाधित करती हैं। परिणमन उसमें हस्तक्षेप नहीं करता। परिणमन का हस्तक्षेप वहां होता है जहां अस्तित्व को विलीन करने की बात सामने आती है। उस स्थिति में परिणमन बहुत सक्रिय हो जाता है, अन्यथा वह मध्यम गति से चलता है। ___अधिकांश भय परिस्थितजन्य होते हैं। एक परिस्थिति बनी, बीमारी फैली और मन में रोग का भय व्याप गया। बुढ़ापे को देखा और बुढ़ापे का भय मन में व्याप गया। घटना को देखते हैं और मन में भय अंकुरित हो जाता है। __ ताओ धर्म के प्रवर्तक महान् दार्शनिक लाओत्से जा रहे थे। सामने घोड़े पर बैठा एक आदमी मिल गया। लाओत्से ने पूछा-'तुम कौन हो भाई ?' 'मैं प्लेग हूं।' 'कहां जा रहे हो ?' 'संघाई नगर में जा रहा हूं।' 'क्या करोगे वहां जाकर ?' 'मुझे दस हजार आदमियों को मारना है।' लाओत्से आगे बढ़ गए। अश्वारोही भी तेजी से आगे बढ़ गया। कुछ दिन बीते। लाओत्से घूम-फिर कर आ रहे थे। रास्ते में पुन: वही अश्वारोही मिला। लाओत्से ने पूछा-'आ गए तुम ?' , 'हां, मेरा काम पूरा हो गया।' 'तुमने झूठ क्यों कहा मुझसे कि दस हजार आदमी मारने हैं ?' 'नहीं मैंने झूठ नहीं कहा था।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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