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________________ वर्षमान : जागरूकचर्या ८७ किया। बहुत बार पूछा जाता है-जाकरूकता की परिभाषा क्या है ? जागरूकता का अर्थ है-कर्म को देखो और पाप का वर्जन करो । व्यक्ति निरन्तर देखता चला जाए-यह कर्म है, यह बंधन है। व्यक्ति सांप को देखता है तो बचने का प्रयत्न करता है। व्यक्ति आग को देखता है तो मुड़ जाता है, बचने का मार्ग खोज लेता है। उससे उसे भय लगता है, डर लगता है और वह बचाव के लिए प्रयत्नशील बनता है। जब व्यक्ति यह देखने लग जाए-सामने कर्म है, बंधन है, वह दुःख देने वाला है, सताने वाला है तब स्थिति बदल जाती है। जिस दिन यह स्थिति निर्मित होगी, उस दिन आदमी बंधन से डरने लग जाएगा और यही है जागरूकता। प्रत्याख्यान वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे कर्म बन्धन की स्पष्ट अनुभूति हो जाए। यह सबसे बड़ा आलम्बन है अपने बचाव का, अस्तित्व के अनावरण का। भगवान महावीर ने जो आचरण किया, उसके पीछे जागरूकता का एक पूरा दर्शन है । उसे समझे बिना पाप से धर्म की ओर जाना, प्रमाद से अप्रमाद की ओर जाना सहज नहीं है। जागरूकता का सूत्र ___ भगवान् महावीर ने चेतन और अचेतन जगत् के संदर्भ में अपने विराट् अस्तित्व को देखा। प्रत्येक आदमी सोचता है—'मैं हूं।' इस सोच में उसका बहुत समय बीतता है। मुझे खाना, मुझे पीना है, मुझे भूख लगी है, मुझे रोटी बनानी है। मुझे व्यापार करना है, पैसा कमाना है। इस परिधि में ही उसका सारा चिन्तन चलता है। महावीर ने देखा-केवल मैं नहीं हूं। मैं ही सब कुछ नहीं हूं, केवल मेरा ही अस्तित्व नहीं है, दूसरों का भी अस्तित्व है। उन्होंने देखा-मिट्टी का भी अस्तित्व है, पानी का भी अस्तित्व है, अग्नि का भी अस्तित्व है, वायु का भी अस्तित्व है। पेड़ का पत्ता हिला और हम जान गए-हवा चल रही है। हम हवा को देखते नहीं हैं, अनुमान से जानते हैं। महावीर ने वायुकाय के अस्तित्व का साक्षात् किया। उन्होंने देखा-वनस्पति का भी अस्तित्व है। पेड़-पौधों का भी अस्तित्व है। घास के एक छोटे से तिनके और एक छोटे से अंकुर का भी अपना अस्तित्व है, अत्यन्त सूक्ष्म हरीतिमा का भी अपना अस्तित्व है। जागरूकता : एकात्मता की अनुभूति उनका दर्शन आगे बढ़ा-चींटी और कीड़े-मकोड़ों का भी अपना अस्तित्व है। बन्दर और खरगोश का अस्तित्व है। मानव का अस्तित्व तो स्पष्ट है । मानव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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